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कामना
कामना विलास-अच्छा, तुम यहाँ क्या करने आये हो?
विवेक-लड़ाई कभी नहीं देखी थी, बड़ी लालसा थी, उसी से-
विलास-तो तू ही वह व्यक्ति है, जिसने बहुत-से घायलो को पास की अमराई में इकट्ठा कर रक्खा है और उनकी सेवा करता है?
विवेक-यह भी यदि अपराध हो, तो दंड दीजिये, नही तो समझ लीजिये कि पागलपन है।
विलास-फिर विचार करूँगा, इस समय जाता हूँ।
विवेक-विचार करते नाइये, कलेना फाड़ते जाइये, छुरे चलाते रहिये और विचार करते रहिये। विचार से न चूकिये, नहीं तो-
विलास-चुप।
विवेक-आहा, विचार और विवेक को कभी न छोड़िये, चाहे किसी के प्राण ले लीजिये, परंतु विचार करके।
(विलास सरोष चला जाता है, विवेक दूसरी ओर जाता है)
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