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अंक ३, दृश्य ३
 


मेरी स्त्री को पकड़ लिया है? आज तुमको यदि मैं पकड़ ले जाऊँ?

लालसा-(मुसकिराकर) कहाँ ले जाओगे?

सैनिक-यह क्या?

लालसा-कहाँ चलूँ, पूछती तो हूँ। तुम्हारे सदृश पुरुष के साथ चलने में किस सुंदरी को शंका होगी!

सैनिक-इतना अधःपतन। हम लोगों ने तो समझा था कि तुम्हारे देश के लोग केवल स्वर्ण-लोलुप शृगाल ही है; परंतु नहीं, तुम लोग तो पशुओं से भी गये-बीते हो। जाओ-

लालसा-तो क्या तुम चले जाओगे? मेरी ओर देखो।

सैनिक-छिः! देखने के लिए बहुत-सी उत्तम वस्तुयें है। सरल शिशुओं की निर्मल हँसी, शरद का प्रसन्न आकाश-मंडल, वसंत का विकसित कानन, वर्षा की तरंगिणी-धारा, माता और संतानों का विनोद देखने से जिसे छुट्टी हो, वह तुम्हारी ओर देखे।

लालसा-तुम्हारे वाक्य मेरी कर्णेन्द्रियों को

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