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अंक ३, दृश्य २
लगाना देखने लगता है। पक्षियों का घर लौटने का मंगल गान होने लगता है सृष्टि के उस रहस्यपूर्ण समय मे जब न तो तीव्र, चौका देने वाला आलोक था-न तो नेत्रों को ढक लेने वाला तम था, तुम्हें देखने की—पहचानने की चेष्टा की, और तुम्हें, कुहक के रूप मे देखा।
कामना-और देखते हुए भी ऑखें बन्द थीं।
सन्तोष-मेरे पास कौन सम्बल था-कामना रानी।
कामना-ओह। मेरा भ्रम था।
सन्तोष-क्या तुम्हें दुःख है कामना।
कामना-मेरे दुःखों को पूछकर और दुःखी न बनाओ।
सन्तोष-नहीं कामना, क्षमा करो। तुम्हारे कपोलों के ऊपर और भौहो के नीचे एक श्याम मंडल है, नीरव रोदन हृदय मे है, गम्भीरता ललाट मे खेल रही है। और भी एक लज्जा नाम की नई वस्तु पलको के परदे मे छिपी है, जो कुछ मर्म की बातें जानती है, जिन्हे हम लोग पहले नहीं जानते थे।
कामना-जाने दो सन्तोष! तुम्हे अब इससे क्या। तुम तो सुखी हो।
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