वाजर की कोठरी 83 शिवनदन को पारसनाथ भी बहुत दिनो स जानता था और उम विश्वास था कि यह बिलकुल साधारण और सीधे मिजाज पालडका है। सुलतानी को विदा करने के बाद पारमनाथ और हरिहरसिह शिवनदन के मकान पर गये और उसकी शादी के बार मे बहुत देर तक चलती फिरती बात परते रहे । हरिहरसिंह वहा अपनी चालावी से बाज न आया, शिव- नदन को शादी के वादोवस्त से खुश देख पर उसने उससे इस बात का इकरार लिखा लिया कि शादी होने के बाद सरला की जो जायदाद से मिलेगी उमम से आधा हरिहरसिंह को वह बिला उन दे देगा। शादी की बातचीत सतम हुई। दिन और समय ठीप हा गया । शादी कराने वाले पण्डित जी भी स्थिर कर लिए गये और यह भी तं पा गया कि बिना धूमधाम के मामूली रमम और रिवाज के साथ रात्रि के समय शादी हो जायगी। इन बाता मे शिवनन्दन ने अपने सानदान की रम्मो मे से दो वाता का होना बहुत जरूरी बयान दिया और उसकी वे दोनो बातें भी खुशी से मजूर कर ली गई। एक तो चेहरे पर रोली का जमाना और दूसरे बादले का बददार सेहरा बाध कर घर से बाहर निकलना । साथ ही इसक यह बात भी से पा गई कि शादी के समय पर केवल एक आदमी को साथ लिए हुए शिवन दन उस मकान में पहुचाए जाएगे जिसमे मग्ला है अथवा जिसमे शादी का बदोबस्त होगा। बातचीत खतम होने पर पारसनाथ और हरिहरसिंह घर चन गए और उमके दो घण्टे मार शिवनन न भी रामसिंह के घर की तरफ प्रस्थान - किया। अब हम भरला और शिवन दन व शादी वाल दिन का हाल बयान करत हैं। वह दिन पारसनाप और हरिहरसिंह के लिए बड़ी खुशी का दिन था । हरन दन की इच्छानुसार बादी ने पूरा पूरा बदोबस्त कर दिया था और इसी बीच मे हरन दन और पारसनाथ को कई दर्फ वादी के यहा जाना पडा थोर इसका नतीजा जाहिर मे दानो ही के लिए अच्छा निकला। जिस दिन शादी होने वाली थी उस दिन पारसनाथ ने शादी का कुल सामान उगी मकान म ठीक किया जिसमे सरला कैद थी। आदमियाम से वेदन
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