काजर की कोठरी 79 ? कि अब हमारे पाम मे किसी तरह की अण्डस बाकी न रही। पारस० ठीक है, मगर दो बातें बादी ने हमारी इच्छा के विरुद्ध की हैं। हरिहर० वह क्या पारस० एक तो उसन सरला के गर्ने मुझसे ले लिए और काम हो जाने पर दस हजार रुपये नवद देने का भी एकरारनामा लिखा लिया है। हरिहर० खैर इसके लिए कोई चिता की बात नहीं है, जब इतनी दौलत मिलेगी तो दस हजार रुपया कोई बडी बात नहीं है। पारस० यही तो मैंने भी सोचा। हरिहर० और दूसरी बात कौन-सी है ? पारस० दूसरी बात उसने हरन दन की इच्छानुसार की है, क्योकि अगर वह उस बात को कवूल न करती तो हरनन्दन उसको इच्छानुसार चिट्ठी न लिख देता। इसके अतिरिक्त वह हरनदन से भी कुछ रपया ऐंठना चाहती थी। अस्तु लाचार होकर मुझे वह भी कबूल करना ही पड़ा। हरिहर० खैर वह बात क्या है सो तो हो? पारस० हरनन्दन ने बादी से कहा था कि मैं सरला से शादी न करूगा, मगर ऐसा जरूर होना चाहिये कि उसकी शादी मेरे दोस्त के माप हो जिसमे मैं कभी-कभी सरला को देख सकू। अगर ऐसा तुम्हारे किये हो सके तो मैं चिट्ठी लिख देने के लिए तैयार हू और चिट्ठी के अतिरिक्त काम हो जाने पर बहुत-सा स्पया भी दूगा । इसी से बादी को हरन दन की बात कबूल करनी पड़ी। बादी को क्या उस बुढिया खन्नास को रुपये की लालच ने घेर लिया और वह इस बात पर तैयार हो गई कि जिस आदमी के साय शादी करने के लिए हरन दन कहेगे उसी आदमी के साथ शादी करने पर मरला का राजी करूगी। हरिहर० (रज से कुछ मुह बना कर) खैर जो चाहो सो करो मगर मैं तो समझता हूं कि अगर तुम कुछ और रुपया देने का एकरार वादी से करते तो शायद यह पचडा ही बीच मे न आन पडता। पारस नही नहीं, मेरे दोस्त ! यह काम मेरे अख्तियार के बाहर था, रुपये की लालच से नहीं निकल सकता था। मैंने बहुत कुछ बादी से
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