वाजर की काठरी 73 तुम्हारी विदाई दी जाएगी तब तुम चपन घर जाना। लोक० ठीन है,आप इमी ममय महल जाकर अपनी चाची साहिबा ये तो कुछ रहना-सुनना हो वह सुन लें, यदि उह कुछ पूछना हो तो मैं जवाब देने के लिए तैयार हूँ, परतु विसी ये रोक्न से मैं यहा रुक नहीं सक्ता पौरन बिदाई यो भोजन ये तौर पर कुछ से ही सकता है क्या कि ऐसा करन ये निये लालसिंह न कसम दिला दी हे बल्कि यहा तर पसम देकर कह दिया है जिव तर तुम वहा रहना तव तव अन-जल तक न छूना । इसलिए मैं कहता हूँ कि मुझे यहा से जल्द छुट्टी दिलाइये क्याकि इस इलाये मे वाहर हा जान वार ही मैं अपने खान-पीने का बन्दो- बम्त पर सनगा। मुझे इस काम को पूरी मजदूरी लालसिंह दे गये हैं, अस्तु अब मैं उनकी कमम को टाल कर अपना धम न बिगाडूगा। लोकनाथ की बातें सुन कर पारसनार यो ताज्जुब मालूम हुआ मगर वास्तव में ये मरवाने उसकी दिली खुशी का बढाती जाती थी । वह हाथ मै चिट्ठी लिए वहा से उठा और मीधे अपनी चाची के पास चला गया। जा कुछ देसा-सुना था बयान करने के बाद उसन लालसिंह की चिट्ठी पढ घर मुनाई। सब कुछ मुन पर जवाब म उसकी चाची ने कहा, "हा, वह ता होना ही था, वे पहिले से ही वहत 4 वि अब हम मयाम ले लेंगे। उन्होन तो जो कुछ सोचा मा रिया, मगर अब दुर्दशा हम लोगो की है । इतना कह कर लालसिंह की स्त्री आखो से आरा गिराने लगी। पारस नाथ ने उसे वहुत-युछ ममझा-बुवा वर शान्त दिया और फिर लोकनाय ने बारे म पूछा कि वह जाने को तैयार - जव तर यहा रहेगा पानी भी न पीयेगा, उमे क्या कहा जाय लालसिंह की स्त्री ने जवाब दिया, मुसे तुम्हारी बातो पर विश्वास है और यह चिट्ठी भी ठीक उनके हाथ की लिसी हुई मौजूद है, फिर में उस आदमी गे क्या पूछूगी और उसे किम लिग अटकाऊगी? तुम जाओ और उमे विदा कसे मरे पाम आओ। पारमनाय खुशी-खुशी याहर गया जहां उसन दो चार बातें करते जोवनाय को विदा कर दिया। इसके बाद खुशी-खुशी एक चिट्ठी लिख कर अपने खास नौकर के हाथ क्मिीदास्त ये पास भेज पर पुन महल ये अदर 1 १
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