घूघरवाल थे, सर बहुत बडा और बनिस्बत आगे के पीछे की तरफ मे बहुत
चौडा था। मौर्वे धनी और दोनो मिली हुई, बासें छोटी छोटी और भीतर की तरफ कुछ घुसी हुई थीं। होठ मोटे और दातो मी पनि बरावर न थी, मूछ के बाल घने और ऊपर की तरफ चढ़े हुए थे। बाखों में ऐसी बुरी चमक थी जिसे देखने से डर मालूम होता था और बुद्धिमान देखने वाता समझ सकता था कि यह आदमी बड़ा ही बदमाश और खोटा है, मगर माय इसके दिलावर और खूखार भी है।
जब सफरदा मागे की तरफ बढ गये तो मवार न बादी से हस के वहा तुम्हारी होशियारी जैसी इस समय देखी गई मगर ऐसी ही बनी रही तो सब काम चौपट करोगी।"
वादी (शर्मा कर) नहीं, मही में कोई ऐसा शद मुह से न निकालती जिससे सफरदा लोग कुछ समझ जाते
मवार वाह ! 'मोती' का शब्द मुह से निपल ही चुना था ।
बादी डोष है मगर
मवार खैर जो हुआ सो हुआ, अब बहुत सम्हाल के काम करना। अब वह जगह बहुत दूर नहीं है जहां तुम्हे जाना है। (सडक के बाद तरप उगती का इशारा करपे) देखो वह बडा मकान निखाई दे रहा है।
बादी ठीक है मगर यह रही कि तुम भागे कहा जा रहे हो ?
सवार मुथे अभी बहुत काम करना है, मौके पर तुम्हारे पास पहुच जाऊगा, हा एक बात कान में सुन लो।
सवार ने पुक कर बादो के मन में कुछ वहा साथ ही इसके दिल ग्युश करा वाली एक आवाज भी आई। वादी ने नम चपत सवार के गाल पर जमाई मवार ने फुर्ती मे घोड़े दो किनारे कर लिया तथा फिर दौडाता हुआ जिघर जा रहा था उधरहोपो चला गया।
अब हम अपने पाठको का एक गावमल चलते हैं । यद्यपि यहाकी आवादी बहुत पनी और लम्बी चौडी नहीं है तथापि जितने आदमी इस मोज में रहते है गव प्रसन है, विशेष करवे आज तो सभी खुश मालूम पड़ते है क्पादिइग मौजे के जिमीनार कल्याणसिह के सडवे हरनन्दन सिंह की शादी