पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६८

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68 काजर की काठरी मेरापंद से छूटना और अपन चहत के साथ ब्याह हाना बादी की बदौलत है, तो यह मुये भी प्यार की निगाह से देखेगी और ऐसी हालत में हम दोनो की जिन्दगी बढी हसी-सुशी के साय बीतेगी। हरनन्दन (बादी की पीठ पर हाथ ठोक वे) शाबाश | क्या न हो । तुम्हारा यह सोचना तुम्हारी शराफत वानमूना है। मगर वादी। मैं क्या करू, लाचार हू कि मेरे दिल से उसका खयाल बिल्कुल जाता रहा और अब मैं उसके साथ शादी करना विल्कुल पसन्द नहीं करता। मैं नहीं चाहता कि मेरी उस मुहब्बत म कोई भी दूसरा शरीक हो जो मैंन खास तुम्हारे लिये उठा रखी है। बादी मेरे खयाल से तो कोई हज नही है। हरनदन नहीं नहीं, ऐसी बातें मत करो और अब कोई ऐसी तीव करो जिससे उसके दिल से मेरा खयाल जाता रहे। बादी (दिल मे खुश होकर) संरतुम्हारी खुशी, मगर यह बात ता तभी हो सकती है जब वह तुम्हारी तरफ से बिल्कुल नाउम्मीद हो जाय और उसकी शादी किसी दूसरे के साथ हो जाय । हरन दन हा ता मैं भी तो यही चाहता हूँ, मगर साथ ही इसके इतना जरूर चाहता है कि वह किसी नव के पाले पड़े। बादी .अगर मेहनत की जाय तो ऐसा भी हो सकता है, मगर यह काम किसी बडे चालाव के लिए ही हो सकता है जैसी कि इमामीजान । हरन दन कौन इमामीजान? बादी इमामीजान एक खवीस बुढिया है जो बडी चालाक और धूत है। कभी-कभी अम्मा के पास आया करती है। मैं तो उस देख ही जल जाती हूँ। हरनन्दन सर मेरे लिए तुम इतनी तकलीफ और करके इमामीजान को इस काम के लिए मुस्तद करों मगर यह बताआ कि इमामीजान का सरता व पास पहुचने का मौका कैसे मिलेगा? बादी इसका इतजाम में कर लगी, किसी-न-किसी तरह आपका काम करना जरूरी है । मैं पारसनाथ को कई तरह से समझा कर कहू गी कि अगर सरला तुम्हारी बात नहीं मानती तो मैं एक औरत का पता