पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६६

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66 माजरीमोठरी यादी जी हा, मैं नहीं जानती, पयापि जर आपर आने पोसबरहुई तर मैंने उसे पायसाने में छिपे रहने की सलाह दी क्योकि उसे आपमा सामना करना मजूर न था और मुझें भी उसवै छिपने में लिए इमसे अच्छी जगह दूसरी कोई न सूमी। हरनन्दन ठीक है, ररिया के पर आपर पायसान म छिपना, उगाल- दान का उठाना, तलवे में गुदगुदाना अपवा नार पर हसी या बुलाना बहुत जरूरी समझा जाता है, बल्कि मप तो यो है मि ऐयागी के मुनसान मंदान में ये ही दो-चार सुशनुमा दरस्त हरारत मोदूर भरने वाले हैं। बादी (दिल में शरमाती मगर जाहिर मे हसती हुई) आप भी अजब आदमी हैं । मालूम होता है आपन सानगिया ये बहुत-से किस्स सुन है मगर किसी सानदानी रण्डी की शराफ्त का अभी भदाजा नहीं किया है। हनादन (हसकर) ठीक है, या अगर अन्दाजा दिया है तो पारस नाप ने। बांदी (कुछ अप कर) यह दूसरी बात है । जैसा मुह वैसी यपेठ।' न मैं उस के लिए रण्डी हू और न वह मेरे लिए लायक सर्दार। यह दिवालिया और कागलासर और मैं अम्मा ये दवाव से जेरवार' हा अगर कोई आप ऐसा सर मुझे मिला होता, तो मैं दिसाती किसानदानी रण्डी की वफादारी पिसे बहते हैं। (अपना कान छू पर) शारदा पी पसम हम लोग उन सानगियो मे नही हैं जिन्होंने हमारी कोम को बदनामी कर रखी है। हरनन्दन (प्यार से शादी को अपनी तरफ संच वर) बेशक, बेशक मुझे भी तुमसे ऐसी ही उम्मीद है और इसी सयाल से मैंने अपने को तुम्हारे हाथ वेच भी डाला है। बादी (हरनन्दन के गले मे हाय डाल कर) मैं तो तुम्हारे कहने से और तुम्हारे काम का खयाल करवे उस मूढी-काटे से दो-दो बातें भी पर लेती हू, नही तो मैं उसके नाम पर थूकना भी नहीं चाहती। हरनदन (इस बहस को बढाना उचित न जान कर और रादी को वगल में दया कर) मारो कम्बस्त को, जान भी पो,कहा का पचहा ले बैठी हो बच्चा यह बताओ, वह कब से बैठा हुआ था?