पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६५

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

काजर की कोठरी 65 लिख देन म उनको हज क्या है सुलतानी अगर वे लिखने मे कुछ हील करें तो मुझे उनके सामन स चलियेगा, फिर देखियेगा कि मैं किस तरह समझा लेती है। इसी तरह की बातें इन दोना मे देर तक होती रही जिसे विस्तार के साय लिखने की कोई जरूरत नही, हा बादी और हरनन्दन बाद का तमाशा दसना जरूरी है। हरनन्दन बाबू की खातिरदारी का कहना ही क्या? बादी ने इह साने की चिडिया समय रखा था और समय तथा आवश्यकता ने इन्हें भी दाता बोर भोला भाला ऐयाश बनने पर मजबूर किया था। दिल मे जो कुछ पुन समाई थी उसे पूरा करन के लिए हर तरह की कारवाई करने का हीसला वाघ लिया था मगर बादी इहेमापा बेवकूफ समझती थी।बादीको विश्वास था कि हरनन्दन का दिल हाथ मे लेना उतना आसान नहीं है जितना पारसनाथ का-और इही सबबो से इनकी खातिरदारी ज्यादा होती थी। हरनन्दन बावृबडीखातिर ओर इज्जत के साथ उसी ऊपर वाले बगले में बैठाये गए । बरसने वाले बाटावे घिर आने से पैदा हुई उमस ने जो गर्मी बढा रक्खी थी उसे दूर करने के लिए नाजुक पसी ने वादी के कोमल हायो का सहारा लिया और इस बहाने से समय के खुशनसीब हरनन्दन बाबू का पसीना दूर किया जाने लगा। "आह, मेरा दिल इतना बर्दाश्त नही कर सकता" यह कहकर हरन दनबाबू ने वादी के हाथ से पखी लेनी चाही मगर उसने नहीं दी और मुहब्बत के साथ चलती रही। दो ही चार दफेको 'हा-नहीं' के बाद इस नसरे का अन्न हुमा और इसके बाद मीठी-मीठी बातें होने लगी। हरनन्दन मालूम होता है कि पारसनाथ आया या ? बादी (मुस्कराती हुई) जी हा । हरनन्दन है या गया? बादी (मुस्कराती हुई) गया ही होगा। हरनदन इसरे क्या मानी। क्या तुम नहीं जानती कि यह है या गया?