पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/६०

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60 काजर की कोठरी की निगाहा स देखता हुआ खुशामद वे ढग पर बोला, 'तुम मुझस पूछनी हो कि मुये क्या इनाम मिलेगा तुम्हे शर्म नहीं आती। हालावि तुम इस बात को बखूबी जानती हो कि यह सब कारवाही तुम्हारे ही लिए को जा रही है और इस काम में जो कुछ मिलेगा उसका मालिक सिवा तुम्हार दूसरा कोई नहीं हो सस्ता तुम जो कुछ हाथ उठा कर मुये दे दोगी वही मंग होगा। बादी यह सब ठीक है, मुये तुमस रपये पंस या लालच कुछ भी नही , म तो सिफ तुम्हारी माहब्बत चाहती हु, मगर क्या करू,अम्मा के मिजाज मे लाचार है । आज बात ही बात मे तुम्हारा जिक्र आ गया था तब अम्मा योनी मै तादा ही तीन दिन की मेहनत मे सरला को राजी कर सू। मैं ही नही बल्कि मरी तकवि स तू भी वह काम कर सकती है मगर मुझे फायदा ही क्या जो इतना सिर-खप्पन करु । मैंने बहुत कुछ कहा कि अम्मा वह तीव मुझे बता दो, मैं उनका काम कर दू तो मुझे भी फायदा गगा, मगर उहाने एक न मानी, बोली कि फिलाने फ्लाने दङ्ग से मेरी निगमया कर दी जाय तो मैं सब कुछ कर सकती है। तो किसी के किये न हा मय वह हम लोग कर मक्ती है।' उन्हीं की बात मुमें इस समय याद मा गई, तब मैं तुमसे कह बठी कि अगर में ऐसा करू तो मुझे क्या इनाम मिलेगा नहीं तो मैं भला तुमसे क्या मागूगी। खैर इन बातो वा जाने दा अम्मा तो पागल हो गई है तुम जा कुछ कर रहे हो करो उनको बातो पर ध्यान ना पार नही नही तुम्ह एमा न यहना चाहिय, आग्घिर जा कुछ तुम्हारी अम्मा ने पाम है या रहेगा वह सब तुम्हारा ही तो है, और अगर मैं इस समय उनकी इच्छानुमार कुछ करूगा तो उमम तुम्हारा ही तोपायदा । मेरे दिल का हाल तो तुम जानती ही हो कि मैं तुम्हारे मुकाबले म रिसी चीज की भीतीक्त नहीं समझता। वर पहिले यह बताओ दिवे चाहती क्या थी? गती अजी जान भी दो उनकी वाताम बहातक पहोगे? वह ता पहगी कि अपना घर उठा कर दे दो तापोई क्या अपना घर रठा कर • गार