पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५६

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56 बाजरीवाठग - ? पारस० नही नहीं, ऐसा नहीं। मैं तुम्हारे सरकीरराम सावररहता हूं कि पल जो कुछ मैंने देखा वह नि सदेह एष अनूठी और ताजुब की वात थी। सुनोगी तो तुम भी ताज्जुब करोगी। भगर मैं यह नहीं कहता कि जो कुछ तुमने कहा या उसकी कुछ भी असलियत नहीं है शायद पैसा भी हुआ हा। वादी वस, नाजवाब हुए ता मेरे सर की क्सम खाने लगे। इनमें हिसाब मेरा सर मुपत का आया है। र पहिने मैं सुन तो त नि कल तमने क्या देखा? पारस (चेहरा उदास बना प) तुम्ह मरी बाता का विश्वास ही नहीं होता। क्या तुम समपती हो कि मैं या ही तम्हारे सर की कमम ग्वाया करता हूँ और तुम्हार सर को कर दू समयता हू वादी (मस्व ग पर)खर तुम पहने क्ल वाली वात ता कहा । पारम० क्या कद , तुम तो दिल दुखा देती हो। वादी अशा अच्छा, मैं समय गई कि तुम्हारे दिल म गहरी चोट लगी और वैशर लगी होगी चाहे मेरी वाता से या और विसी की वाता से। पागम० पिर उसी ढग पर तुम चली आर जब ऐसा ही है ना फिर मेरी वाता का तुम्ह विश्वास ही क्या होन लगा (लम्बी साँस सकर) हाय, क्या जमाना आ गया है। जिसके लिए हम मर वही "स तरह चुट- किया ल ।। बादी जोहा मरत तो मैक्डाका दखती मगर मुना निकलत किसी का भी दिखाई नहीं देता। इतना कहकर वादी बात उडाने के लिए खिलखिला कर हस पडी और पारसनाथ के गाल पर हलकी चपत लगा के मुस्कराती हुई पुन बाली जरा सी दिल्लगी मेरो देने का ढग अच्छासीख लिया है इतना भा नही समयने वि में कौन-सी बात ठीक रहती है और कौन-सी दिल्लगी के तौर पर | अच्छा बताओ कल क्या हुआ और तुम आय क्या नही मुझे तुम्हारेन आने का वडा रज रहा।' पारस० (खुश होकर और बादी के गले में हाथ डाल कर) वेशव 7