काजर की कोठरी 55 से सुना चाहता हूँ बादी (ठट्ठा उडान के तौर पर हस कर) जी हा क्या बात है आपको चालाकी की, अब दुनिया में एक आप ही तो समझदार और सच्चे रह गये हैं।। पारस० (चौक कर) यह 'सच्चे' के क्या मानी आज 'सच्चे व उल्टे' खिताब पर तुमने ताना क्यो मारा क्या मैं झूठा हू या क्या मैं तुमसे झूठ बोल कर तुम्हे धोखे में डाला करता हू' वादी तो तुम इतना चमके क्यो? तुम्हे मच्चा कहा तो क्या बुरा किया ? अगर मुझे ऐसा ही मालूम होता तो दावे के माथ तुम्ह 'झूठा' कहती। पारस० फिर वही बात । वही ढग वादी खर इन सब बातो को जाने दो, इन पर पोछे बहस करना पहिले यह बताओ कि कल तुम आये क्यो नही? तुम तो यहा हरनन्दन बाबू को दिखा देने के लिए अपने चाचा को साथ लेकर थाने का वादान पर गए थे 'तुम्हारी जबान पर भरोसा करके न मालूम किन किन तीवो स मैंने आधी रात तक हरन दन बाबू को रोक रखा था। आखिर वही नाय टाय पिस ।' मैं पहिले ही कह चुकी थी कि अब हरनन्दन बाबू को तुम्हार चाचा का कुछ भी डर नहीं रहा और इस बारे म तुम्हारे चाचा का मुह-तोर जवाब मिल चुका है। अब वह बडे भारी वेवकूफ होग जो हरनन्न बानू को देखने के लिए यहा आवेंगे। पारम (तग्ददुद की सूरत बना कर) घात ता कुछ ऐसी ही मालूम पड़ती है मगर इतना मैं फिर भी बहू गा कि क्ल के पहिल इस विस्म को काइ वात न थी, पर कल मुझे भी रग बुरे ही नजर आये किसका मक्व अभी तक मालूम नहीं हुआ, पर मैं विना पता लगाए छोडने वाला भी नहीं वादी (मुस्करा यर) अजी जाओ भी, नुम्ह गात की कुछ खबर ता हई नही, कहते हैं कि कल से कुछ बुरे रम नजर आते हैं।'हा यह कहत तो कुछ अच्छा भी मालूम पडता कि मेरे होशियार कर देने पर कल कुछ पता लगा है।'
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