पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५४

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54 काजर को कोठरी हलदन के साथ देख चुके हैं। हम यह नहीं कह सकते कि उसके बाद पारसनाय और हरनन्दन बाबू का आना इस मकान मैदोदफे हुआ या चार दफे हा इसमे कोई शक नहीं कि उसके बाद भी उन लोगो का आना यहा जरूर हुआ, मगर हम उसी जिक्र को लिखेंगे जिसमे कोई खास बात होगी। वादी अपने सामने पानदान रक्रो हुए धीरे धीरे पान लगा रही है और कुछ सोचती भी जाती है। दो ही चार वीडे पान के उसने खाए होंगे कि लौंडी ने सवर दी कि पारसनाय आए हैं, बही बीबी उहे वरामदे मे रोक कर बातें कर रही हैं। इतना सुनते ही वादी न लौंडी को ता चले जाने का इशारा किया और सुद पानवान को किनारे पर एक बारीक चादर से मुह लपेट सो रही। जब पारसनाथ उस कोठडी म आया तो उसने बादी को ऊपर लिखी हालत मे पाया। वह चुपचाप उसके पास बैठ गया और धीरे धीरे उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा। बादी (लेटे ही लेटे) कौन है ? पारस० तुम्हारा एक तावेदार बादी (उठ कर) वाह वाह मैं तो तुम्हारा ही इतजार कर रही 1 थी। पारस० पहिल यह तो बताओ कि आज तुम्हारा चेहरा इतना सुस्त और उदास क्या है? बादी कुछ नही, या ही बेवक्त सा रहने से ऐसा हुआ होगा। पारस० नहीं नहीं, तुम मुझे घोसा देती हो सच बताआ क्या बात बादी बह तो चुकी और क्या बताऊ 'तुम तो खाहमखाह की हुज्जत निकालते हो और याही शक करते हो। पारस० बस बस, रहने भी दो मुझसे बहाना न करा जहा कुछ है वह मैं तुम्हारी अम्मा से सुन चुका है। बादी (कुछ भौवें मिकोड कर) जब सुन ही चुके हो तो फिर मुझसे क्या पूछते हो? पारम० उन्हाने इतना खुलासा नहीं कहा जितना मैं तुम्हारी जुबान