जाजर की कोठरी 51 इसके जवाब में पारसनाथ ने कहा- पारस हा मिल जायगी, अगर उसकी शादी तुम्हारे साथ हो जायगी नो। सरला मगर उस हालत मे तो उसमे से आधी दौलत तुम लोगो को भी मिलने की आशा हो सकती है। पारस० (कुछ झेंपकर) हा, तुम्हारे पिता की लिखावट का मतलब तो यही है मगर हम लोग ऐसी दौलत पर लानत भेजते हैं जिसमे तुम्हारा और चाचाजी का दिल दुखे, हा, इतना जरूर कहगे कि जान से ज्यादे दौलत की कदर न करनी चाहिए और इस समय तुम्हारे हाथ मे कम-से- कम चार आदमियो की जान तो जरूर है, अगर अपनी जान नहीं तो अपन प्यारे रिश्तदारो की जान का जरूर ही खयाल करना चाहिए। सरला (कुछ चौंककर) मेरी समझ मे न आया कि तुम्हारे इस कहने का मतलब क्या है? पारस० बस यही कि अगर तुम हरिहरसिंह के साथ ब्याह करना स्वीकार कर लोगी तो इस समय तुम्हारी, तुम्हारे पिता की, तुम्हारी माता की, और साथ ही इसके मेरी भी जान बच जाएगी और स्पया-पैसा तो हाथ-पैर का मैल है तथा यह बात भी मशहूर है कि लक्ष्मी किसी के पास स्थिर भाव से नही रहती, इधर-उधर डोला ही करती है। सरला क्या हम लोगो मे किसी और का दूसरा ब्याह भी होता है । मैं तो दिल से समझे हुए हूँ कि मेरी शादी हो चुकी ' हा, इसमे कोई स देह नहीं कि मैं अपनी जान समपन करके तुम लोगो की जान बचा सकती हू, मगर उस ढग से नहीं जिस ढग से तुम कहते हो, क्योकि मेरे पिता के जीते- जो न तो वह वसीयतनामा ही कोई चीज है और न किसी को उनकी दौलत ही मिल सकती है। नतीजा यही होगा कि जिस लालची को मैं धम त्याग करके स्वीकार कर लगी, वह मेरे बाप की दौलत शीघ्र पाने की आशा से मेरे पिता को अवश्य मार डालेगा और ताज्जुब नहीं कि अब भी उनके मारने का उद्योग कर रहा हो। हा एक दूसरी तरकीब से उन लोगो की जान अवश्य बच जाएगी जो मैं अच्छी तरह सोच चुकी हू पारस० (बात काटकर) न मालूम तुम कैसी-कैसी अनहोनी दाते -
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