50 काजर मी कोठरी , सरला (हरनन्दन की खबर मुन दुख और सज्जा से सिर नीचे करके) खर यह वताओ कि आखिर मेरा पता तुम्हें कैसे लगा पारस० मैं सब-कुछ कहता हूँ तुम मुनो तो सही। हा तो जव हरनदन की बात तुम्हारे पिता को मालूम हुई तो उसे बहाही त्रोध चढ माया ! उन्होने मुझे बुलाकर सब हाल कहा और यह भी कहा कि मुथै यह सब पारवाई उसी हरनन्दन की मालूम पडती है, अस्तु तुम पता लगाओ कि इसका असल भेद क्या है । इस मामले में जो कुछ सच होगा मैं तुम्हे दूगा।' बस उसी समय से मैंन अपनी जान हथेली पर रख लो और तुम्हें खोजने के लिए घर से बाहर निकल पडा। इस कारवाई में क्या क्या तक- लीफें उठानी पड़ी और मैंने कैसे-कैसे काम किए इसका कहना व्यथ है। असल यह वि मुमे शीघ्र इस बात का पता लग गया कि यह सब जाल हरिहरसिंह के फैलाये हुए हैं, जिसके साथ तुम्हारी वह मौसेरी बहिन कल्याणी' व्याही गई थी जोमाज इस दुनिया मे तुम्हारा दुःख देखने में लिए न रहकर बैकुण्ठधाम चली गई। सरला मैंने हरिहरसिंह का क्या बिगाडा था, जो उसन मेरे साथ ऐसा सलूक किया? मेरे पिता ने भी तो उसके साथ किसी तरह की बुराई नहीकोपी पारस ठीक है, मगर में इसका सबब भी तुमसे बयान करता है, तुम सुनती चलो। तुम्हारे पिता ने जो वसीयतनामा लिसा है उसमा हाल तो तुम्हें मालूम ही होगा? सरला हा मैं अपनी मा को जवानी उसका हात सुन चुकी है। पारस० बस वही वसीमततामा तुम्हारी जान का काल हो गया, मोर उसी रुपये की लालच मे पडकर हरिहर ने ऐसा किया। सरला बहुत ही नक, बुद्धिमात तथा पढ़ी-लिखी लहकी थी। यद्यपि उसकी अवस्था गम थी मगर उसको पतिव्रता और बुद्धिमान माता ने उसरे दिल में नेकी और बुद्धिमानी की जड कायम कर दी थी और वह इसीलिए रुची-नीची बातो को बहुत नहीं तो पोडा-बहुत अवश्य समझ सकती थी, मगर इतना होने पर भी वह न मालूम क्या सोचकर पूछ बैठी-पया ऐसा करने से हरिहरको मेरे बाप की दौलत मिल जाएगी?"
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