पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/५

यह पृष्ठ प्रमाणित है।

संध्या होने में अभी दो घण्टे की देर है मगर सूर्य भगवान के दर्शन नहीं हो रहे, क्योकि काली काली घटाओ ने आसमान को चारो तरफ से घेर लिया है। जिधर निगाह दौडाइये मजेदार समा नजर आता है और इसका तो विश्वास भी नही होता कि संध्या होने में अभी कुछ कसर है।

ऐसे समय मे हम अपने पाठकों को उस सडक पर ल चलते है जो दरभग से सीधी बाजितपुर की तरफ गई है।

दरभगे से लगभग दो कोस के आगे बढकर एक बैलगाड़ी पर चार नौजवान और हसीन तथा कमसिन रडिया पानी, काफूर पेयाजी और फालसई साडिया पहिरे मुख़्तसर गहनो से अपने को सजाए आपुस में ठठाल पन करती बाजितपुर की तरफ जा रही हैं। इस गाड़ी के साथ ही साथ पीछे-पीछे एक दूसरी गाडी भी जा रही हैं जो उन रडियो के सफरदाआ के लिए थी। सफरदा गिनती में दस थे मगर गाड़ी में पांच से ज्यादे के बैठने की जगह न थी इसलिए पांच सफरदा गाडी के साथ ही साथ पैदल जा रहे थे। कोइ तम्बाकू पी रहा था, कोई गांजा मल रहा था, कोई इस बात की शेखी बघार रहा था, कि 'फलाने मुजरे में हमने वह बजाया कि बड़े बड़े सफरदाओ को मिर्गी आ गई!' इत्यादि। कभी-कभी पैदल चलने वाले सफरदा गाड़ी पर चढ जाते और गाड़ी वाले नीचे उतर आते, इसी तरह बदल बदल के साथ सफर तै कर रहे थे। मालूम होता है कि थोड़ी ही दूर पर किसी जिमीदार के यहां महफिल में इन लोगो का जाना है, क्योकि सन्नाटे मैदान में सफर करते समय संध्या हो जाने से इन्हे कुछ भी भय नही है और इस बात का डर है कि रात हो जाने से चार-चुहाड अथवा डाकुओं से कही मुठभेड न हो जाए।

बैल की किराची गाडी चर्खा तो होती ही है, जब तक पैदल चलने