पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/४८

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48 बाजरबी काठग मयालात पाहात और मिटत ह आर वह किन विचारामे डूबी हुई। यवायर वह कुछ सोच कर उठ बैठी और इधर-उधर दखती हुई धीरग बोली, 'तो क्या जान १ दन के लिए भी कोर तगीव नही गिन मरती" इसी समय उस कोठडी का दर्वाजा मुता और कइ नकामपाश एक ना कैदी यो उस कोठडी के अदर डाल कर बाहर हो गय । योठटी का दवाजा पुन उसी तरह मे वाद हो गया। जय वह कैदी सरला र पास पहुचा ता सरला उग देखरर चौहानोर इस तरह उसकी तरफ झपटी जिसमे मालूम होता था कि यदि सरला हथक्डी ने जकली हुई न होती तो उस कैदी से लिपट कर खूब रोती, मग मजबूरी थी इसलिए 'हाय भया।' वह कर उसने पैरो पर गिर पडन क सिवाय और कुछ न कर सकी । यह मैदी सरला का चचेरा भाई पारसनाम था । उसने सरला क पास वैठकर मासू बहाना शुरू किया और सरला ता एसा रोई कि उसकी हिवकी बघ गई। आखिर पारस ने उसे समझा-बुझा नर शात किया और तब उन दोनो मे या बातचीत होने लगी- सरता भैया | क्या तुम लोगा को मुझ पर कुछ भी दया न आई' और मेरे पिता भी मुझ एक्दम भूल गय जो आज तक इस बात को खाज तक न की कि सरला कहा और किस अवस्था म पड़ी हुई ह? पारसः मेरी प्यारी बहिन सरला' क्या कभी ऐसा हो सकता था कि हम लोगो को तरा पता लगे और हम लोग चुपचाप बैठे रहे । मगर क्या किया जाय, लाचारी से हम लोग कुछ कर न सके । जव स तू गायन हुई है तभी से मैं तेरी खोज में लगा पा, मगर जब मुझे तेरा पता लगा तब मैं भी तेरी तरह उन्हा दुप्टा का कैदी बन गया जिन्होन रुपय की लालच म पर कर तुझे उस दशा को पहुचाया। सरला० मैं तो अभी तक यही समये हुई थी कि तुम्ही न मुज्ञ इस दशा को पहुंचाया, क्योकि न तुम मुझे बुला करचोर-दर्वाजे के पास ले जात । और न मैं इन दुष्टा के पजे में फमती। पारस० राम राम राम, यह बिल्कुल तेरा भ्रम है। मगर इसमे तेरा कुछ क्सूर नहीं । जब आदमी पर मुसीबत आती है तब वह भवडा जाता है, 1