काजर की कोठरी 47 उदास मुख पारसनाथ अपन चाचा के पास से उठ कर चला गया और उसके रोव तथा बातो की उलझन म प पर यह भी पूछ न सका कि आप रात को किमरे साथ रहा गए थे। अव हम अपने पाठवा को एक ऐसी सोठडी मे ल चलन है जिसे इस समय पदखाने के नाम से पुकारना बहुत उचित होगा, मगर यह नहीं कह सक्ते दि यह कोठडी कहा पर और विमके आधीन है तथा इसके दर्वाजे पर पहरा दने वाले कौन व्यक्ति हैं। यह कोठडी लम्बाई मे पद्रह हाथ और चौडाई मे दस हाथ से याद न होगी। वेचारी सरला को हम इस समय इसी वोठडी मे हथक्डी-वेडीम मजबूर देखते हैं । एक तरफ कोन मे जलते हुए चिराग की रोशनी दिखा रही है कि अभी तक उस वेचारी वे बदन पर वे ही साधारण कपडे मौजूद हैं जो व्याह वाले दिन उसके बदन पर थे या जिन कपडो के सहित वह अपने प्यारे रिश्तेदारो से जुदा की गई थी। हा उसके बदन मे जो कुछ जेवर उस समय मौजूद थे उनमे से आज एक भी दिखाई नही देत । यद्यपि इस वार्दात को गुजरे अभी बहुत दिन नहीं हुए मगर देखने वाला की आखो म इस समय वह वर्षों की बीमार होती है। शरीर सूख गया है और अधेरी कोटडी मे बद रहने के कारण रग पीला पड़ गया है। उसके तमाम बदन का खून पानी होकर बडी-बडी आखो की राह बाहर निकल गया और निकल रहा है। उसके खूबसूरत चेहरे पर इस समय डर के साथ ही साथ उदासी और नाउम्मीदी भी छाई हुई है और वह न मालूम क्सि खयाल या विस दद को तकलीफ से अपमुई होकर जमीन पर लेटी है। यद्यपि वह वास्तव मे खूबसूरत, नाजुक और भोली भाली लडकी है मगर स समय या इस दुदशा की अवस्था मे उसकी खूबसूरती का बयान वरना बिल्कुल अनुचित-सा जान पडता है, इसलिए इस विषय को छोड कर हम असर मतलव की बातें बयान करते हैं। सरला के हाथो मे हथकडी और पैरा मे वेडी पड़ी हुई है मौर वह केवल एक मामूली चटाई के ऊपर लेटी हुई आंचल से मुह छिपाये सिसक- सिसक कर रो रही है। हम नहीं रह सकते कि उसके दिल मे कैसे-कैसे ।
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