42 जाजर की कारी रज यस ता इसी स आप गमय लीजिए कि वादी के यहा जब पारमनार और हरन दन दोनो जात है तो बादी टरा बात को जरूर चाहेगी कि जहा तक हो सके दोना ही मे रुपय वसूल कर मगर उस ज्यादे पक्ष उसी का रहेगा जिमसे ज्यादे आमदनी को मात देनेगी। साल० वशक मूरज. अस्तु जब तब वह पारसनाय से रपय वसूल करन का मौका देगी तब तक उसको अपना दुश्मन बनाने म भी जहा तक हागा टालमटोल करती ही रहेगी, इसलिए सरवे पहिले राम वही करना उचित-जिगम पारगनाय रपये के बारे म पार-बार वानी में झूठा बनना नाल (वात बाट बर) ठीक है ठीक है मैं आपका मतलय समय गया वास्तव में ऐसा होना ही शाहिए। हा, मुझे एव और भी वन्त हा जरुरी बात पर आपसे सलाह करनी है। मूरज० मुो भी अभी आपसे वहुत-सी बातें करनी है। इसवे वाद गरजसिंह और लालसिंह म घण्टे भर तर वातवीत हाता रही जिसके अन्त म दोना आदमी पर साथ उठ ग्वष्टे हुए। लालसिंह न अपने दवावप सटी पर से उतार कर पहिरे और हाथ म एव मोटा गा डण्डा तिया जिगते अर गुप्ती बधी हुई थी, इसके बाद दाना लामा कमरेन महर निाकर रिमी नरपया रवाना हो गए। पारसनाथ अपने चाचा र हाल चाल की खबर यराबर जिया पता था। उसने अपन ढग पर कई ऐसे आदमी मुक्रर रमै य गोदि लाल पर कारत्ती-पत्ती हाल उसके बानो ना पहुंचाया करत और जमा वि प्राम, कुपात्रा व सगी साथी क्यिा करत है उसी तरह उन खबराम बनिम्बन गनक अवका हिस्गा बहुत ज्याद ग्हा वरता था। गत गो लालसिह के पास गूमिह वे जान को दत्तिना भी पार नाय को हो गई, मगर उमम दा बाना का पत्र पर गया। एक तो उसका पागस इस बात का पता न बता सका कि आने वाला कोन या क्याषि रामिह अपन वा छिपा हुए लागिह तय गरने य चौर म वाता
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