बाजर की कोठरी 39 भी है जिससे मुझे विश्वास हो जाए कि सरला मारी नहीं गई और हरनन्दन ने जो कुछ किया वह उचित था? सूरज. जी हा। इतना कहकर सूरजसिंह ने एक पुर्जा निकाल कर लालसिंह के आगे रख दिया। लालसिंह ने उस पुर्जे को बडे गौर से पढा और ताज्जुब मे आकर सूरजर्जासह का मुह देखने लगा। सूरज० कहिए, इन हरूफो को आप पहचानते है ? लाल० वेशक | बहुत अच्छी तरह पहचानता हूँ मूरज. और इसे आप मेरी बातो का सबूत मान सकते ह या नहीं? लाल. मानना ही पडेगा, मगर सिफ एक बात का सबूत । भूरज० दूसरी बात का सबूत भी आप इसी को मानेंगे मगर उसके बारे में मुझे कुछ जुबानी भी कहना होगा। लाल० कहिए, कहिए, मैं आपकी बाता पर विश्वास करूगा, क्यारि आप प्रतिष्ठित पुरुष है और नि स देह आपको मेरी भलाई का खयाल है। इस समय यह पुर्जा दिखा कर आपने मेरे माथ वैसा ही सलूक किया जैसा समय की वर्षा का सूखी हुई खेती के साथ होता है। सूरज० यह सुनकर आपको ताज्जुब होगा कि बादी के पास हरनदन के बैठने का कारण यह पुर्जा है । इस तत्व को विना जाने ही लोगा ने उसे वदनाम कर दिया। यो तो आपको भी उसके मिजाज का हाल मालूम ही है, मगर ताज्जुब ह कि आप भी बिना मोचे-विचारे दुश्मनो को वातो पर विश्वास कर बैठे। लाल० वशक ऐसा ही हुआ और लागो न मुझे धोखे म डाल दिया। ता क्या यह पुर्जा हरन दा के हाथ लगा था मूरज० जी हा जिस समय महफिल में नाचने के लिए बादी तैयार हा रही थी, उसी समय उसके कपडे मे से गिरे हुए इस पुर्जे को हरन दन के नौकर ने उठा लिया था। वह नौकर हिदी अच्छी तरह पढ सकता ह अस्तु उसने जब यह पुजा पढा तो ताज्जुब मे आ गया। यह पुर्जा तो उसन पौरन लारर अपने मालिक को दे दिया और उसी समय महफिल का रग बदरग हो गया जैसा कि आप सुन चुके हैं। अब आप ही बताइए दि इम ?
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