पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/३८

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38 काजरी कोठरी अन्दर पैर रखा। उह देखते ही लालसिंह उठ खडा हुआ और मजबूरा के साथ जाहिरी खातिरदारी का बर्ताव करवे साहब-सलामत के बाद अपने पास बैठा लिया। इस समय मूरजसिंह अपनी मामूली पोशाक ता पहिरे हुए थे मगर ऊपर से एक बडी स्याह चादर मे अपने को ढावे हा लाल. आज तो आपने मुझ वदनसीब पर वही कृपा की। मूरज० (मुस्कराते हुए) बदनसीब कोई दूसरा ही कम्बख्न हागा मैं तो इस समय एक खुशनसीय और बुद्धिमान आदमी को बगत में वैठ, हुआ बातें कर रहा ह जिससे मिलने के लिए आजचार दिन स मोच विचार में पड़ा हुआ था। लाल० (कुछ चौक कर) ताज्जुब है कि आप एक एसे आदमी को खुशनसीब कहते हैं जिसकी एकलौती लडकी ठीर व्याह वाल दिन इम बदर्दी के साथ मारी गई है कि जिसकी कैफियत सुनन से दुश्मन को भा रज हो, और साथ ही इसके जिसके समधी तथा दामाद की तरफ से एमा बर्ताव हुमा हो जिसके बर्दाश्त की ताकत कमीने मे कमीना आदमी भी न रख सकता हो सूरज० यह सब आपका श्रम है और जा कुछ आप वह गा है उम्म से एक बात भी सच नहीं है। लाल. (आश्चय से) सो कंस? क्या मरता मारी ना गइ और क्या उस समय आपके हरनन्दन बादू वादी गरी समाप खुशिया मनान मूरज० (बात काट के) नही नहीं, नहा' माना जान यूठ है जो आज यही साबित करने के लिए मैं आप पास गया। लाल. कहने के लिए तो मुये भी लाग न यहा कहा था कि मरता के मरने म शव है, मगर बिना विसी तरह या सात पाय मा वाता का विश्वास पब हो सकता है। सूरज • ठीक है, मगर मैं बिना क्मिी तरह वा नवत पाय एसी बात पर जोर देने वाला आदमी भी तो नहीं है । लाल. तो क्या रिसी तरह का मत इम समय आप पास मौज