36 माजर की काठी हरनन्दन तुम कहते तो हो मगर ज्याद खुल चलना भी मुझे पसन्द नहीं है। रामसिंह ज्यादे खुल चलना जमाने की निगाहम नहीं सिफ बादश और पारसनाथ की निगाह में। हरनदन हा, सो तो होगा ही और होता भी है मगर इस बात का खबर पहिले ही बाबू लालसिंह को ऐसी खूबी के साथ हो जानी चाहिए कि उनके दिल मे रज और शक को जगह न मिलने पावे और वे अपनी जान की हिफाजत का पूरा-पूरा बदोबस्त भी कर रखखें बल्कि मुनासिब तो यह है कि वे कुछ दिन के लिए मुर्दो में अपनी गिनती करा लें। रामसिंह (आवाज मे जोर देकर) बेशक एसा ही होना चाहिए। यह बात परसों ही मेरे दिल मे पदा हुई थी और इस मामले पर दो दिन तक मैंने अच्छी तरह गौर करके कई बातें अपन पिता से आज ही सवेरै कही भी है। उन्होने भी मेरी बात बहुत पसाद की और वादा किया कि 'कल लालसिंह से मिलने के लिए जायगे और वहा पहुंचने के पहिले चाचा जी (कल्याणसिंह) से मिल कर अपना विचार भी प्रगट कर देंगे। हरमन हा तब काई चिन्ता नहीं है, यद्यपि लालसिंह बडा उजट्ठी और जिद्दी आदमी है परन्तु आशा है कि चाचाजी (रामसिंह के पिता) की बातें उसके दिल में बह जायगी। रामसिंह माशा ता ऐसी ही है । हा मै यह कहना ता भल ही गया कि आज मैं महारज से भी मिल चुका हूँ। ईश्वर की कृपा से जो कुछ मैं चाहता था महाराज न उसे स्वीकार कर लिया और तुम्हे बुलाया भी है। सच तो यो है कि महाराज मुझ पर बड़ी ही कृपा रखते है। हरनदन नि सदेह ऐसा ही है और जव महाराज से इतनी बातें हो चुकी हैं तो हम अपना काम बड़ी खूबी के साथ निकाल लेग। अच्छा में एक बात तुमसे और बहूगा। राममिह वह क्या? हरनदन एक आदमी एसा होना चाहिए जिस पर अपना विश्वास हो और जो अपन तौर पर जाकर बादी वे यहा नौकरी कर ले और उम का एतबारी बन जाए।
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