पहिल ही विदा हो जान या हुक्म मिला। इसके बाद जब सूरजर्जामह और रामसिंह सलाह विचार करके कल्याणसिंह से विदा हुए और मिलने में लिए हरन दन के कमरे मे आए तो हरनदन को वहान पाया, हा खोज- खबर परल पर मालूम हुआ कि बांदी रंडी के पास बैठा हुआ दिल बहला रहा है, वहीं बादी रडी जिसका जिक्र इस किस्से के पहिले क्यान में आ चुका है और जो आज की महफिल मे नाचन के लिये आई थी।
सूरजसिंह और रामसिंह को यह सुनकर बड़ा ताज्जुब हुआ कि हर- नन्दन बादी रडी के पास बैठा दिल बहला रहा है। क्यारिये हरनन्दन के स्वभाव से अनजान न थे और इस बात को भी खूब जानत थे कि वह रहियो के फेर में पड़ने या उनकी सोहबत को पमद करने वाला लडका नहीं है और फिर ऐसे समय में जब कि चारो तरफ उदासी फैली हुई हो उसका यादी के पास बैठकर गप्पें उडाना तो हद दर्जे का ताज्जुब पैदा वरता था। आखिर सूरजसिंह ने अपने सडके रामसिंह को निश्चय करने के लिए उस तरफ रवाना किया जिधर बादी रडी का डेरा था और आप लौटकर पुन अपने मित्र कल्याणसिंह के पास पहचे जो अपन कमरे मे अकेले बैठे कुछ सोच हे थे।
वल्याण (ताज्जुव से) आप लौट क्या ? क्या कोई दूसरी मात पैदा हुई।
सूरज० हम लाग हरन दन से मिलने के लिए उसके कमरे मे गये तो मालूम हुआ कि वह बादी रडी के हरे मे वठा हुआ दिल बहला रहा है। पल्याण. (चौंककर) वादी रडी के यहा नही, कभी नही वह ऐसा लहमा नहीं है, और फिर ऐस समय म जवकि चारातरफ उदासी फैली हुई हो और हम लोग एक भयानक घटना के शिकार हो रहे हा । यह बात दिल मे नहीं बैठती।
सूरज. मेरा भी यही स्याल है और इसी से निश्चय करने के लिए मैं रामसिंह को उस तरफ भेज कर आपरे पास आया है। कल्याण. अगर यह बात मंच निकली तो बड़े ही शर्म की मात होगी।हमो-युशी के दिनो मे ऐसी बातो पर लागो का ध्यान विशेष नही जाता औरन लोग इस बात को इतना पुरा ही समझते हैं, मगर आज ऐसी