पृष्ठ:काजर की कोठरी.djvu/१२

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12 काजरकीकोठरी तीसरा ब्याह की ओढनी है। सिपाही मगर सरकार, इसे मैं पहिचानता हूँ और जरूर पहिचानता कल्याण (लम्बी सास लेकर) ठीक है, मैं भी इमे पहिचालताह, अछा और निकालो। मिपाही (और एक कपडा निकाल के) लीजिए यह लहगा भी है। बशर वही है।" कल्याण आफ, यह क्या गजब है। यह कपडे मेरे घर क्या आ गए और ये खून से तर क्या है ? नि म देह ये वही कपडे हैं जो मैंने अपनी पतोहू के वास्ते बनवाय थ और समधियान भेजे थे। तो क्या खून हुआ क्या लडकी मारी गई? क्या यह मगल वा दिन अमगल के साथ यदल ? गया? इतना कहार कल्याणसिंह जमीन पर बैठ गया। नौकरा ने जल्दी स कुर्मी लाकर रख दी और कल्याणसिंह को उस पर बैठाया। धीरे धीरे बहुत से आदमी वहा आ जुटे और बात की-बात म यह खबर अदर-बाहर मय तरफ अच्छी तरह फैल गई। इस खबर ने महफिल मे भी हलचल फैला दी और महफिल मे बैठे हुए मेहमाना को कल्याणसिंह को देखने की -वण्ठा पैदा हुई। आखिर धीर धीरे बहुत से नौकर सिपाही और मेहमान वग जुट गए और उस भयानक दृश्य का आश्चय के साथ देखने लगे। या तो कल्याणसिंह वे बहुत-से मेली मुलाकाती थे मगर सूरजसिंह नामी एक जिमीदार उनका सच्चा और दिती दोस्त था जिसकी यहा के राजा धर्मासह वे वहा भी बडी इज्जत और क्दर थी। सूरजसिंह का एक नौजवान लडवा भी था जिसका नाम रामसिंह था और जिसे राजा धम- सिंह बारह मौजा वातहसीलदारबना दिया था। उन दिना तहसीलदारा को बहुत बडा अस्तियार रहता था यहा तक सैक्डा मुकाम दीवानी और पोजदारी खुद तहसीलदार ही फैसला रखे उसकी रिपोट राजा पास भेज दिया करत थे। रामसिंह को राजा धमसिंह बहुत मानत मे, अस्तु कुछ तो इस सबब से मगर ज्याद अपनी बुद्धिमानी के सबब उसन अपनी इरजन और धार बहुत बढा रक्खी थी। जिस तरह क्ल्याणसिंह