पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/९७

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दिनशा एडलजी वाचा। . दि ". विधाविवादाय; धनं मदाय, शक्तिः परेषां परपीटनाय । रखलस्य साधोविपरीत मेतत्, शानाय, दानाय च रक्षणाय ॥ * Sad नशा एडलजी वाघाका जन्म दूसरी अगस्त सन् १८४४ को बम्बई नगर में हुमा । भारम्भिक शिक्षा प्राप को यम्यई के प्रसिद्ध विद्यालय एलफिन्स्टन कालिज में मिली । जिस समय आप यहां पढ़ते थे, उस ममय उस कालिज में मिा हार्कनेस, · सर अलेक्जेंटर यांट, यूलिंग्ज, सिंजर इत्यादि उत्तम उत्तम प्रध्यापक.थे । उन लोगोंका ध्यान विद्यार्थियों के हित की ओर अधिक रहता था। विद्या के, संस्कार से विद्यार्थी लोग सच्चे मनुष्य बन जायें यह - उन अध्यापकों की मनोकामना रहती थी। विद्या पढ़ कर भी यदि विद्यार्थी पशुवत बने रहे तो ऐसी शिक्षा से लाभ ही क्या ?.व अध्या- पक गणा स्वतंत्र और विद्याप्रिय देश के रहने वाले.घे, जिस प्रकार उनको . उत्तम और स्वतंत्र रूप से विद्या प्राप्त हुई थी उसी तरह की शिक्षा व अपने पास पढ़ने वाले शिष्यों को देते थे। विद्या की सहायता से कीन . कौन गुण मनुष्य में आने चाहिएं यह बात वे अपने छात्रों को खूय अच्छी तरह समझाते थे। परन्तु गुण ग्रहण करने को शक्ति सब में यराबर नहीं होती। कोई कोई विद्यार्थी अपने शिक्षक के सारे गुणों को ग्रहया कर लेते हैं और कोई कोई न्यूनाधिक । याज बाज पुरुषों की. प्रकृति ऐसी होती है कि वे अच्छे गुण तो नहीं ग्रहण करने बुरे गुणों का

  • सल को विद्या विवाद के लिए, ‘धन मद के लिए, यल दूसरों

को पीड़ा देने के लिए है। परन्तु साधु को इसके विपरीत विद्या ज्ञान के लिए, धन दान के लिए और बल दूसरों को रक्षा के लिए है।