मिस्टर नारायण गणेग पन्दायरकर । ७५ . धन्दावरफर ने इन्दुप्रकाश के भंगरेज़ी. भाग फा सम्पादन बड़ी योग्यता के साथ धरायर ग्यारह वर्ष तक किया । इन ग्यारह वर्षों में बन्दु ने अपना.राजनैतिक प्रकाश दक्षिण में किस उत्तमता और गान्ति के साथ फैलाया इस बात को ये लोग खूध अच्छी तरह जानते हैं जिन्हों ने उस समय अपने हृदय के अंधकार को एन्दु के प्रकाश से दूर किया था । अथवा जिनके ऊपर सम्म प्रकाश का प्रतिविम्य पड़ा था। राजनैतिक सम्बन्ध में लो जो यातें उस समय उसमें प्रकाशित हुई वे सय अक्षरसः सत्य निकलीं। एक समय लोगों को यह निश्चय हो गया था कि इन्दुप्रकाग पर भी अन्य समाचार पत्रों की तरह कोई न कोई मुफदगा जरूर कायम होगा। परन्तु ईश्वर की कृपा से, इन्दुप्रकाश पर कोई कालिमा नहीं लगी। यह सब चन्दावरकर की चतुरता और सावधानी का ही फल था । सर्वसाधारण के विषय में, सत्य और न्याय पूर्यफ बिलकुल 'निर्भय होकर स्पष्ट रूप से लिखना और उसके द्वारा यश प्राप्त करना परय सम्पादक फा मुख्य फर्तथ्य है। इस कर्तव्य फो चन्दावरकर ने यहुत ही उत्तम रीति से पालन किया। सन् १८८१ में प्रापने एल. एल. बी० की परीक्षा पास की। इस परीक्षा में आपने हिन्दू धर्मशास्त्र के विषय में जो उत्तर दिए वह परीक्षकों को सर्वोत्तम जंचे। और इस योग्यता के बदले में, आपको अर्नाल्ड स्कालरशिप मिला । सन् १८८५ में, प्राप विलायत गए। उस साल विज्ञायत में, पार्लिया- भेंट का नया चुनाव होने वाला था। भारत के राजनैतिज्ञ लोगों ने उस समय आपस में मिलकर यह राय फायम की कि भारतवर्ष की सच्ची स्थिति विलायत वालों को बताने के लिए कुछ लोग विलायत जायें और वहां वे लोग भारत का दुःख उनके सन्मुख उपस्थित करें । सम्भव है कि उदार एटिश जाति के लोग, भारत की सच्ची स्थिति जान कर भारत पर कुछ दया करें और पार्लियामेंट में जो नए मेम्वर प्रवेश करें • वे भारत के दुःख निवारणार्म पार्लियामेंट में उद्योग करें। इस साशा से कुछ लोग हा एक प्रान्त की भोर से, सिलायत में व्याख्यान देने के लिए भेजे
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