उन्हें सर्वसाधारण के विचार का ज्ञान न होता था। प्रतएव सरकारी और दे तरकारी मेम्बरों के यीच बड़ा कोलाहल होता । एक दूसरे के विचारों फा सच्चा ज्ञान न होने से व्यर्थ का विरोध बढ़कर सरकार और प्रजा दोनों को हानि पहुंचती थी। यह त्रुटि सब से पहले शंकरन् के ध्यान में प्राई । शंकरन ने सरकार से निवेदन किया कि हर एक कानून का मसविदा और उस पर सरकारी और ये सरकारी मेम्बरों की राये एकत्रित की जाकर, उस पर सबों को विचार करने का मौका दिया जावे। जिससे सब मेम्बरों को एक दूसरे के मत का ठीक ठीक ज्ञान हो जावे। और बाद को जिस के मत की ओर अधिक राय लोगों की हो वह पास किया जावे । विरोध का कारण अनभिज्ञता है। जब यह यात सरकार को मार लूम हो गई तब उसने शंकरन् के विचारानुसार व्यवस्था करदी। शंकर ने अपनी विलक्षण युद्धि के सहारे सरकार और प्रजा दोनों की भलाई के लिए यह एक नया रास्ता निकाल दिया जो यथार्थ में दोनों को लाभ- कारी हुआ । शंकरन ने सरकारी अधिकारियों की कुछ परवाह न करने देशहित की बात सरकार को बतला ही दी और सरकार ने भी उसका उपयोग किया। कौंसल में प्रवेश होने पर शंकरन ने विलिज सर्विस- बिल के कानून का विरोध किया। श्राप की वक्तता शीलता का यह फल निकला कि वह बिल पाम होते होते त को गया और जिस का परिणाम अन्त में यह निकला कि सरकार प्रार्थिक लाभ अधिक हुश्रा । शंकरन् महोदय को देश हित की अधिक चिंता रहती है । सन् १८८८ से श्राप बरायर नेशनल कांग्रेस में पधारते हैं । वक्तृता के विषय में प्राप की योग्यता कुछ गम्भीरता लिए हुए है। श्राप के व्याख्यान सुनने लायक होते हैं। परन्तु उनमें वह उत्साह कल्पना वैचित्र अथवा ज़ोर नहीं होता, जिससे सुनने वालों को तुरन्त ही कुछ अधिक उत्साह पैदा हो। हां, श्रापके भाषण में विशेषता यह होती है कि नाप थोड़े शब्दों में, बहुत फुच्च भाव और अर्थ पूर्ण, प्रासंगिक महत्व की बातें कह जाते हैं; जिसका मभाष मननशील पुरुषों पर बहुत ही अधिक पड़ता है ! परन्तु, माप और विधार
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