मि० सी० शंकरन् नाय्यर वी० ए० बी० एल० । ६३ . • दय ने काश्तकारों का पक्ष लेकर उनकी भलाई के लिए कमीशन में बहुत ही अच्छी राय दी। आपने काश्तकारों के पक्ष का समर्थन ऐसी उत्तम रीति से किया कि यदि आप विलक्षण बुद्धि के पुरुष न होते तो प्रतिपक्षी लोग कभी किसी प्रकार कृषकों की भलाई की ओर बिलकुल ध्यान न देते। इस प्रकार स्वदेश बांधवों के हित का काम करने से भाप को अधिक नामवरी मिली। आपने याचा हीन, दीन, स्वदेशी बांधयों को सुख पहुंचा फर तथा सरकार का भी नुक्सान न करके, स्वार्थ परमार्थ दोनों का भली प्रकार निर्वाह किया । बस यही भाप की कीर्ति की जड़ है। सन् १८८५ में आप स्टेप्युटरी सिविल सर्विस में नियुक्त हुए । और सन् १८८० में प्राप मदरास यूनिवर्सिटी के फ़ेलो बनाए गए। सन् १८८० में आप मदरास की लेजिसलेटिव कौंसल में मेम्बर नियत हुए। इस कौंसल में आप बहुत दिनों तक नहीं रहे परन्तु जितने दिनों तक आप उस में रहे उतने दिनों तक आपने बड़ी योग्यता के साथ काम किया। सत्य का पक्ष कितना बलवान होता है यह बात आपने खूब अच्छी तरह सिद्ध कर दी। हम यहां पर उस समय के कानून बनाने .की रीति का थोड़ा सा हाल पाठकों के जानने के लिए देते हैं। जब किसी फ़ानून के बनाने की इच्छा सरकार को होती थी तब उस का विचार और तत्संबंधी पूर्वापर साहित्य वर्षों तक इकट्ठा किया जाता था। यहां तक कि कभी कभी पन्द्रह बीस वर्ष तक एक बिल को पास करने में लग जाते थे। जिस विषय में कानून बनाने को होता था, उस विषय पर जिले के अधिकारियों का मत एकत्रित किया जाता था और बहुधा जय तक जिले के अधिकारियों में से कोई तरक्की पाकर ग. मैंट की ओर से मेम्बर नहीं हो जाता था तब तक वह बिल कौंसल में पेश नहीं होता था। इस से यह होता था कि जो राय उस मेम्बर की होती थी वही राय सरकारी राय समझी जाती थी। इस के अलावा जो और मेम्बर लोग होते थे उन्हें जिला के अधिकारियों के मत का जान नहीं होता था। जो मेम्पर सरकारी अधिकारियों में से होते थे.
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