पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/७६

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फानस-धारतायला। . सहायता से अच्छी तरक्की की। वे यहां उस समय एक मुयोग्य, ईमान- दार और उपयोगी अफसर समझे जाते । शंकरन् महोदय की प्रारम्भिक शिक्षा यथावत् होने के पश्चात् श्राप फे पिता की घदली फनानोर को हो गई है.यहां शंकरन नायर की तीख युद्धि को विकसित होने का अच्छा अवसर प्राप्त हुआ । कनानोर में जाफर नाय्यर ने अपनी पुद्धिमत्ता का अच्छा परिचय दिया । वहां पर एक विशेष यात यह हुई फि मेट्रिक्युलेशन पास होने के दो वर्ष पहले ही से शाप को अंगरेज़ शिक्षकों द्वारा शिक्षा प्राप्त करने का. सौभाग्य प्राप्त हुआ। जिसके कारण श्राप फी मानसिक शक्तियों की अधिक उमति हुई। दो तीन वर्ष के बाद मापने पिता का यहां से भी तबादिला हो गया। वे कालिकट भेजे गए । अतएव शंकरन को भी वह स्थान छोड़ना पड़ा । उस समय गयमेंट कालिगों को प्राविशि- यल स्कूल कहते थे। कालिकट में जाकर शंकरन ने पढ़ने में राषही दिल लगाया और ख़ास कर इतिहास में। परन्तु इतिहास का प्रेम होने पर भी विचित्रता यह हुई फिजय श्रापने सन् १८७३ में मेट्रिक्युलेशन की परीक्षा दी तय इतिहास में ही फेल हो गए। इस पारया प्रापके सहपा- ठियों और अध्यापकों को यहा प्राश्चर्य हुमा । कभी कभी प्रतिभागाली विद्यार्थियों में भी यह यात देखी जाती है कि उनको अपने प्रिय विषय में इतनी रतसता प्राप्त हो जाती है कि वे केवल नियुक्त पुस्तकों का ही अभ्यास नहीं करते वरन् नियुक्त पुस्तकों को झट पट ख़तम करके उत्ती विषय की अन्य और उच्च पुस्तकों का अवलोकन प्रथया अध्ययन करने लग जाते हैं। परन्तु जब वे परीक्षा देने बैठते हैं तो प्रश्नों का उत्तर लिखने में इतना अधिक लिख जाते हैं, अथवा लिखना चाहते हैं, जितना कि उस कक्षा के विद्यार्थी के लिए श्रावश्यक नहीं। या ज़रूरत से ज्यादा लिखे जाने के कारण परीक्षक गणं उधर ध्यान ही नहीं देते । अतएव वे अपने प्रिय विषय में फलीभूत नहीं होते। यही हाल शायद शंकरन् । नाय्यर का हुना हो । परन्तु पीछे को यह बात ज्ञात हुई कि इसमें नायर महाशय का कुछ अपराध नहीं था, परीक्षक माशय की लापरवाही के -