रहमतुझा महम्मद सयानी। समझ कर करते हैं । परोपकार के जिस काम की ओर आप का ध्यान जाता है उसे दिल लगा कर परिश्रम के साथ उत्तमता पूर्वक करते हैं। सर्वसाधारण के शिक्षा प्रचार में आप, के विचार बहुत ही उच्च हैं । आप का मत है कि जब तक भारत के हर एक बच्चे को शिक्षा नहीं दी नायगी तब तक कभी भारत की उन्नति नहीं हो सकती है। विद्या रूपी नेत्र बिना मनुष्य किसी प्रकार की भलाई समझने योग्य नहीं होता । हमें क्या हक़ प्राप्त हैं और क्या प्राप्त होना चाहिए; हमारा सम्बंध राजा से कैसा और किस प्रकार का है यह धात बिना विद्या मास किए नहीं ज्ञात हो सकती । जिस तरह मनुष्य को प्रकाश का ज्ञान होने के लिए नेत्रों की मावश्यकता है, बोलने के लिए जिहा की ज़रूरत है, सुनने के लिए फान की ज़रूरत है, और सूंघने के लिए नाक की ज़रूरत है, उसी प्रकार अपने हकूक जानने के लिए हर एक को विद्याकी बड़ी ही जरूरत है। अतएव हर एक भारतवासी बालक को शिक्षा मिलना ही चाहिए। बगैर प्रति बंधक (Compulsary) शिक्षा का प्रबन्ध किए देश का कभी कल्याण नहीं हो सकता । यह आप का कथन बहुत ही ठीक है। हरएक भारतवासी को इस पर विचार करना चाहिए और किस प्रकार लाज़मी शिक्षा दी जा सकती है इस के साधन एकत्रित करके उनसे काम लेना चाहिए । बम्बई सरकार ने आप को लेजिसलेटिव कौंसल का सभा- सद बनाया । कौंसल में आपने इस उत्तमता के साथ काम किया कि फ़ीरोज़शाह नेहता के बाद बम्बई प्रान्त की ओर से श्राप वायसराय की कौंसल. के मेम्बर मुकर्रर हुए। वायसराय की कौंसल का मेम्बर होना कुछ सहज बात नहीं है। सरकारी मेम्यर तो सरकार की इच्छा से नियुक्त होते हैं परन्तु प्रजा को भोर से ये-सरकारी मेम्बर होना बड़े गौरव की बात है। प्रजा की ओर से वायसराय की कौंसल में बैठकर प्रजा के हित का फ़ानून बनाने में जो सरकार की हां में हां नहीं मिलाते वह धन्य हैं। उनका गौरव दिनों दिन बढ़ता ही.जाता है। सयानी साहय का भारत की सारी सुशिक्षित समाज सादर करती है। इस का कारण यही है कि आप सद्गुणी हैं; गुणियों की कदर
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