रहमतुल्ला मुहम्मद सयानी। toisessesein गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते, न महतोपि सम्पदः !* गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणः ।। नुष्य का बड़ा होना उसके मन पर अवलम्बित है और मन का बड़ा होना पुनर्जन्म के संस्कारों अथवा ईश्वर की कृपा का फल है। मनुष्य को उत्तम शिक्षा प्राप्त होने से संस्कारों और ईश्वर की कृपा का जो फल प्राप्त होता है उसकी दिनों दिन वृद्धि होती जाती है । इस प्रकार जिस मनुष्य का मन उन्नति दशा को प्राप्त हुआ और उसके द्वारा कुछ देशहित का काम हो वह धन्य है ! उसका धरित अनुकरणीय और चित्र दर्शनीय है ऐसे उन्नतिशाली पुरुषों में रहमतुम्मा मुहम्मद सयानी- की भी गणना हो सकती है आप का जन्म सन् १८४६ में हुआ। आप ने धम्बई में शिक्षा प्राप्त की । सन् १८६३ में पाप ने मेट्रिक्युलेशन की परीक्षा पास की। सन् १८६६ में, आप बी० ए० पास हुए। जिस समय श्राप कालिज में पढ़ते थे उस समय आप ने कई एक इनाम पाए । भाप ने मन लगाकर विद्याध्ययन किया इस धावत आप की कई एक शिक्षकों ने प्रशंसा की । जो आप से मिलता भाप के स्वभाव और विद्या की प्रशंसा बिना किए नहीं रहता। सन् १८६७ में सापने एम० ए० को परीक्षा पास की और उसके बाद एल० एल० बी०, की भी परीक्षा आप ने पास की । एल्फिन्स्टन कालिज में प्राप दक्षिणा. फेलो नियत हुए। आप की विद्या और बुद्धि को जान कर सरकार ने आप को बम्बई का जस्टिस माफ़ दी पीस मुफ़र्रर किया। बाद को
- गुण सब ठौर-आदर पाता है, बड़ी सम्पत्ति नहीं।
गुणी गुण को जानता है, निर्गुणी नहीं।