बाप परेन्द्रनाथ यनी । ५१ हूं यह चिरकाल तक बना रहेगा । युवा पुरुषों के मन पर शिक्षा का संस्कार हालने का काम मेरे सुपुर्द किया गया है इस यायत मुझे बड़ा मानन्द और अभिमान है"। सामाजिक, और राजनैतिक सुधार की बावत सापनेपाहा कि "विद्यार्थियों को राजनैतिक चर्चा में शामिल होना चाहिए यह हमारी राय है। विद्यार्थियों को इतिहास का मनन जरूर करना चाहिए । यिलायत में विद्यार्थियों को राजनैतिफ चर्चा करने का पूरा पूरा अधिकार है। हर एक रोजगार की शिक्षा पाने के लिए सम्मेदयारी करना पड़ती है। अतएव राजनैतिक चर्चा का अभ्यास विद्यार्थी लोग न करें यह हमारी समझ में ठीक ठीक नहीं पाता।" पाश्चमात्य- शिक्षा का पूर्ण रूप से प्रापके उपर असर पड़ा है परन्तु आपने धर्म और नीति के व्ययहार को कभी परित्याग नहीं किया। आपने पूने में विद्या- र्मियों को उपदेश दिया था कि "किसी कार्य का प्रारम्भ करो उसकी युनियाद धर्म और नीति के अनुसार डालनी चाहिए। ऐसा करने से ही उस कार्य में, ठीक ठीक सफलता प्राप्त होगी। धन, कीर्ति, अथवा विद्या पन में से कोई भी वस्तु प्राप्त हो अथवा न हो परन्तु धर्म और नीति का परित्याग करना अथया उससे विमुख दोना अच्छा नहीं है। भारत सरकार की शासनप्रणाली में जो कुछ दोष हैं उन में सुधार . करने के लिए भी श्राप यहुत कुछ प्रयत्न करते हैं। अंगरेजी सरकार को माप बहुत ही अच्छा समझते हैं । भाप का विश्वास है कि “जैसे जैसे हम लोग अच्छे होते जायंगे सरकार हमको उसी प्रकार अधिकार प्रदान करती लायगी।" "यट्वाली" पत्र जिस समय आपने अपने हाथ में लिया उस समय उसके केवल १०० ग्राहक थे और पत्र साप्ताहिक था। परन्तु आपके उद्योग और प्रयत्न से भय बंगाली के हजारों ग्राहक होगए हैं और पत्र दैनिक प्रकाशित होता है। यही दशा प्रापके कालिज की हुई । आज कल रिपनकाजिल को खूब ही अच्छी उन्नति है। हजारों विद्यार्थी उससे शिक्षा लाभ करके देश को लाभ पहुंचा रहे हैं। कलकत्ते में बंगालियों के बीच 'शिवाजी उत्सव' का प्रचार श्रापने ही किया। बंगालियों में वीर पूना का अंकुर मापने ही पैदा किया।-
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