मालिक बाबू की मूर्ति यतौर नज़ीर के अदालत में लाई गई थी। यह समाचार कांग्रेस-धरितावली। कि यदि इस पत्र का सम्पादन हम करें तो हम इसे बहुत ही उत्तम रीति से चलावे। उस समय सुरेन्द्रनाथ का नाम और उनकी कीर्ति बङ्गाल में चारों ओर फैल चुकी थी अतएव कई एक लोगों ने आप को इस पत्र के सम्पादन करने की सलाह दी । बङ्गाली पत्र के बाबू वेचाराम से श्राप ने अपनी और अपने मित्रों की इच्छा प्रगट की । बाबू वेचाराम ने बंगाली पत्र का सय अधिकार खुशी के साथ वावू सुरेन्द्रनाथ के हाथ बेंच दिया। उस समय पत्र के केवल १०० ग्राहक थे। परन्तु पत्र के उत्तम प्रकार सम्पादन होने पर दो वर्ष में ही १४२२ ग्राहक हो गए । कालिज में विद्यार्थियों को पढ़ाना, म्युनिसिपैलिटी के काम को देखना, समाचार पत्र का सम्पादन करना, प्रानरेरी मजिस्ट्रेटी का काम करना और सभा समाजों में व्याख्यान देना इत्यादि ज़िम्मे- दारी के काम करना क्या सहज बात है ! व्याख्यान, लेख और बालकों ये तीनों काम बहुत ही कठिन हैं। हर एक काम को एक आदमी पूरी तौर पर नहीं कर सकता उसे एक आदमी करे, पह कितने बड़े आश्चर्य की बात है ? फिर भी एक वर्ष नहीं, दो वर्ष नहीं, २५ वर्ष से बरावर आप इन सब कामों को खुशी के साथ करते हैं । भारतवर्ष में राजनीति की चर्चा जिन जिन महात्मानों द्वारा होती है उन सबों में बाबू सुरेन्द्रनाथ अग्रगण्य हैं । जिस प्रकार इग्लैंण्ड में दादा भाई नौरोज़ी भारत के दुःख के दूर करने का उपाय सोचा करते हैं उसी प्रकार भारत में बाबू सुरेन्द्रनाथ प्रयत्न करते हैं । राजकीय सत्व क्या वस्तु हैं इस का ज्ञान आप ने शिक्षित समाज को पूर्ण-रूप से अपनी वक्तत्व शक्ति द्वारा करा दिया है। आप के ऊपर कई एक बार संकट पड़े परन्तु आपने अपने कर्तव्य और साहस का परित्याग नहीं किया । सन् १८८३ में आप के ऊपर एक और संकट उपस्थित हुआ । कलकत्ता हाईकोर्ट के एक मुकदमें में एक बार सालिगराम को पढ़ाना। "ब्रह्म पबलिक प्रोपिनियन” नामक पत्र में छपा । उपरोक्त पत्र का सम्पादक उस समय एक हाईकोर्ट का अटर्नी था । अतएव
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