४४ कांग्रेस-चरितावली। दूसरी परीक्षा पास की। इस में भी आप अव्वल नम्बर रहे । सन् १८६६ में श्राप दूसरे दर्जे में बी० ए० पास हुए । उस समय आप की उमर केवल १८ वर्ष की थी । डेविटन कालिज के प्रिंसिपेल . मिस्टर साइन सुरेन्द्रनाथ पर अधिक प्रीति करते थे। उन्होंने सुरेन्द्र बाबू की चम- त्कारिक बुद्धि को देख कर, बायू दुर्गाचरण से सुरेन्द्रनाथ को विलायत सिविल सर्विस परीक्षा पास करने को भेजने की सिफ़ारश की । बाबू दुर्गाचरण ने मिस्टर साइम की राय को पसन्द किया और मार्च सन् १८६८ में मुरेन्द्रनाथ को सिविल सर्विस परीक्षा पास करने को विलायत भेजा । विलायत जाकर बाबू सुरेन्द्रनाथ यूनीवर्सिटी कालिज में भरती हुए । उस समय इस कालिज में मिस्टर ग्लेटस्टन के जीवन चरित लेखक और वर्तमान समय में भारत के स्टेट सेक्रेटरी मिस्टर जान माले अध्यापक थे। नाप ने उन्हीं से शिक्षा पाई । जान मार्ले सरीसे विद्वान से शिक्षा पाने पर सुरेन्द्रनाथ बाबू ने अंगरेज़ी भाषा का बहुत अधिक ज्ञान प्राप्त किया। आप ने वहां प्रोफेसर गोल्ड स्टकर साहब से संस्कृत भाषा का भी अध्ययन किया । सन् १८६८ में सिविल सर्विस की परीक्षा में करीव ३०० के उम्मेदवार थे । इन सबों में सुरेन्द्रनाथ का ३८ वां नम्बर प्राया। परन्त उमर का झगड़ा पड़ जाने से अधिकारियों ने आप का नाम सिविल सर्विस की फेहरिस्त से काट दिया । परन्तु सुरेन्द्रनाथ ने इस याबत इग्लेगह की सब से बड़ी अदा. लत में इस यावत सरकार से विनय की। सुरेन्द्र यायू की विनय सरकार ने स्वीकार की और श्राप का फिर नाम लिस लिया गया । आप के साथ ही श्रीपाद याया जी ठाकुर का नाम काट दिया गया था। उनका भी नाम अदालत की इजाज़त से दाखिल कर लिया गया। जनवरी सन् १८७० में घायू मुरेन्द्रनाथ ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की। परन्तु दुःख की यात है कि उस समय भाप के पिता जिन्दा न । भाप के पास होने का मुममाचार आने और आप के पिता के मरने में केयल एक दिन का अन्तर पहा । अर्थात् वायू दुर्गाधरण २२ फर्यरी के दिन हम संसार संसार को त्याग परलोक निधारे और माय मुरेन्द्रनाथ के पास, होने की समर २९ तारीस को प्राप्त हुई। 1
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