पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/५६

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राव बहादुर पी० आनन्द चारलू । ft गुग्णाः कुर्वन्ति दूतत्वं दूरेऽपि वसतां सताम् । केतकींगधमाधाय स्वयमायान्ति पट्पदाः ॥ * रतयप देश में विद्वान्, देशहितेपी और साहसी लोग भव भा पैदा नहीं होते यह बात नहीं है। परन्तु यह देश बहुत बड़ा होने और बड़े २ प्रांतों में विभक्त होने और उन मांतों में अलग अलग भाषायें बोली जाने के कारण एक प्रांत वासी दूसरे मांत वालों से बिलकुल अनभिज्ञ रहते हैं। इसी कारया देश के बड़े बा पुरुषों का पता एकत्रित रूप से नहीं लगता। मदरास प्रांत हमसे बहुर दूर है। यहां की भाषा भी हमारी भाषा से निराली है । अतएव उस प्रान के महात्माओं, देशहितैषियों और सुकार्यकर्ताओं के चरित बहुर ही कम हम लोगों को सुनाई पड़ते हैं। परन्तु कांगरेस के होने से और उसमें सब मांत वासियों के एकत्रित होने के कारण एक प्रांत वासियों का, बहुत कुछ परिचय दूसरे प्रान्त वालों के साथ दुआ है। हमारी जातीय सभा की उन्नति चाहने वाले और उस में काम करने वाले मदरास प्रान्तवासी महाशय आनन्द चारलू भी हैं। श्रतएव उनकी संक्षिप्त जीवनी हम नीचे देते हैं। भाप का जन्म मदरास प्रान्त के वे चित्तूर नामक गांव में हुआ। पर यह गांव उत्तरी पराकाट जिले में मदरास से १०० मील दूरी पर है। जाति के माप द्राविड ब्राह्मण हैं। प्राप के पिता चित्तूर के एक दलर में नौकर थे। धीरे धीरे वे उसी जिले में शरिस्तेदार तक हो गए। जिस समय

  • दूर रहते हुए भी सज्जनों के गुण कदर करने वालों को खींच

लाने के लिए दूत का काम देते हैं। केतकी की महक भवरों को प्रापही बुला लेती है।