जस्टिस बदरुद्दीन तय्यब जी । २५ के लिये भेज दिया था। पपा उन्हें अपनी सन्तान के साथ बिल. कुल स्नेह नहीं था। परन्तु यह यात नहीं, उन्हें अपने लहकों के भावी कल्याण और सुख की ओर अधिक ध्यान था। इसी लिए उन्होंने इतनी कम उमर और इतनी दूर विलायत में अपने लष्ठकों को भेज दिया। ऐसे पुरुषों को धन्य है और यहां जाकर रहने वाले को भी। बदरुद्दीन सय्यद जी ने यिलायत में गाफर "न्यूयही हाईपार्फ कालिज" में प्रवेश किया यहां आपने लन्दन यूनियर्सिटी की प्रवेशक परीक्षा पास की। इस परीक्षा में पास हो जाने के बाद आप उच्च शिक्षा पाने के लिए कालिज में भरती हुए। परन्तु दुःख के साथ कहना पड़ता है कि यहां आप के ऊपर एक संकट उपस्थित हुमा । सन् १८६४ ईस्वी में आप बीमार हो गए प्रतएव भाप को स्वदेश वापस भाना पड़ा। एक वर्ष में आप को पाराम होने के बाद ही पाप फिर शीघ्र ही विद्या- भ्यास के लिए विलायत चले गए । परन्तु डाक्टरों ने कहा कि कालिग में पढ़ने से फिर भाप का स्वाथ्य जल्द सराय हो जायगा। और खास कर आप की मांसों पर ज्यादा पढ़ने का यहुत ही बुरा परिणाम होगा डाक्टरों की ऐसी राय होने पर बदरुद्दीन तय्पय जी ने उच्च शिक्षा प्राप्त करने का विधार छोड़ दिया । और फ़ानून पढ़ने के लिए आप "मिडिल टेम्पल" नामक फ़ानूनी मदरसे में भरती होगये। यहां पाप ने दो वर्ष शिक्षा पाई और पैरिस्टरी की परीक्षा पास की। नवम्बर सन् १८६७ में प्राप वैरिस्टरी की परीक्षा पास करके बम्बई 'वापस आए। उस समय लोगों का विचार था कि बैरिस्टरी फरना गोरों का ही काम है । नेटिव बैरिस्टर की ओर लोग बहुत ही कम ध्यान देते थे। भय भी कहीं कहीं पर लोगों का ऐसा ही विचार बना है।' गोरे बैरिस्टर को ही लोग ज्यादातर मुफदगों में बुलाते हैं। भय भी लोगों का ऐसा ही विचार है तो उस समय इस . 'घात का बहुत ही सयाल किया जाता होगा। उस समय यदरुद्दीन तय्यब जी पहले नेटिव बैरिस्टर ! तरुया और मुसलमान जाति के ! फिर क्या कहना? लोग हर एक बात में आप को दिक करते ! परन्तु
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