पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/४०

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२२ कांग्रेष्ठ-चरितायलो। - फे यूरे होगए। इस समय पर भारतवासियों के लिए इतनी उमर बड़ी से घड़ी है। इतनी उमर के यूड़े इस देश में दर्शन के योग्य रह जाते हैं। उनसे कोई काम नहीं लेना चाहता । परन्तु हम भारतवासियों की इतनी हीन दशा है कि हम प्रय भी दादाभाई से काग लेना चाहते हैं। और फाम भी कैसा ? राजनीति फा; जो सय कामों से बड़ा कठिन और सिरतोड़ काम है। अभी तक भारत में ऐसे लोग तय्यार नहीं हुए जो दादा भाई का काम करें और उन्हें पाराम दें।" यथार्थ में इतने वृद्ध होजाने पर भी, आप देशहित के लिए जवानों से बढ़ कर काम करते हैं किसी कवि ने ठीक कहा है ऐसा परमार्थी पुरुप, पोर न देख्यो कोय । जिन निज तन मन धन सबै, अप्पो लोगन होय ॥ आर्यावर्त समग्र हम, आलोक्यो धरिचित्त । दादा सो दादाहि इक, और न पुरुप उचित । एक कवि ने प्राप को इस प्रकार प्राशीर्वाद दिया है :- चिरजीवी रहि वर्ष शत, करी सुयश कृति प्राप; जामें भारत वर्ष को, बाढहि पूर्ण प्रताप । दम भी तथास्तु कह कर इस लेख को समाप्त करते हैं । 40A ADA 44A AIA CSCre AU AA CCC DVOD VOV 9V emere TODCOM VoyCOD w