दादा भाई नौरोजी। १५ परिणाम यह हुआ कि उस परीक्षा में संस्कृत और अरबी भाषा के लिए. जो नम्बर फम करदिए गए थे वे फिर वैसे ही पूर्ववत् कर दिए गए । सन् १८६६ में, आपने "एथनालाजिकल सोसाइटी" में "युरोप और एशिया के लोग? इस विषय पर कई एक निबंध पढ़ कर सुनाए । अंगरेज लोगों के मन में भारत वासियों के संबन्ध में कुछ नसत्य और बुरे विचार पैदा होगए थे.वह बहुत कुछ इन निबंधों से लोप होगए । सन् १८६७ और ६८ में, आप ने जो भलाई के काम किए उनमें से मुख्य ये हैं "भारत सम्बधी इग्लेंगड का वार्तव्य; "मैसूर" "इण्डियन सिविल सर्विस परीक्षा में भारत वासियों को लेने के लिए प्रार्थना;" और "अविसीनिया के युद्ध का सर्च"। इन विषयों पर निबंध लिख कर प्रकाशित किए । “फीमेल नार्मल स्कूल" कायम करने के लिए भाप ने सर स्टेफर्ड नार्थ कोट के साथ पत्र व्यवहार किया । और "इपिहयन असोसिएशन के कर्तव्य" तथा "भारत में बांध और नहरों के काम” इन विषयों पर भी लेख लिख कर प्रकाशित किए। इस प्रकार भारत के हितार्थ विलायत में १२-१३ वर्ष कठिन परिश्रम करके सन् १८६९ में, आप भारतवर्ष में लौट शाए । जय माप विलायत से वापस पाए तब बम्बई के महाजनों ने श्राप को एक मान पत्र, कुछ धन और एक पुतला अर्पण किया। मान पत्र में, कृतज्ञता सूचक आप की प्रशंसा और देश सेवा का वर्णन था जो धन । आप को दिया गया था वह सम भाप ने देश कार्य में लगादिया। यह स्वार्थ त्याग का कितना अच्छा नमूना है !! बम्बई आने पर भी स्वदेश हित का काम भाप बराबर ज्यों का त्यों करते रहे। सन १८६८ में गोंडल के महाराजा के कहने पर नापने भारत की स्थिति पर एक बहुत अच्छी वक्तृता दी । उस में आपने । भारत की स्थिति का यथोचित चित्र सींच कर दिखा दिया। इसी वर्ष आप ने "सन् १८६० ई० का यम्बई के कपास का कानून” इस विषय पर वं एक बहुत ही अच्छा गम्भीर और प्रभाव शाली लेख लिखा। उस में । भोप ने यह यात अनेक प्रमाणों से सिद्ध की कि, इस एक के । मंधार होने से इस देश को यहुत हानि उठाना पड़ेगी और प्रजा को
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