पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/३२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१४ कांग्रेम-चरितावनी। मुख्य उद्देश को मुपालता के लिए प्रयव करना प्रारम्भ कर दिया । पहले पहल नापने "ईस्टइण्डियन असोसिएशन" में और अन्य स्थानों में भारत की स्थिति पर अनेक व्यारयान दिए । जिस से कि मुहृदय अंगरेज लोगों को भारत की सूची गोपनीय स्थिति मालूम पड़गई । दादा भाई ने उन फी भासों के सामने भारत की यर्तमान दुर्दगा की प्रत्यक्ष मूर्ति सही फरदी । फिर उनके उदार और न्यायी अंतः करण को दपाई करने के लिए आपने फाई एक लेस नीर छोटी छोटी पुस्तकें लिख कर प्रका: शित की । इस काम में आपने अपना निज का यहुत सा धन भी सर्व किया । सन् १८५९ में आपने भारत के कर्ताधर्ता सेक्रेटरी श्राफ़ स्टेट लाई स्टैनले साहब के साथ सिविल सर्विस के नियमों में कुछ फेर फार करने के लिए लिखा पढ़ी की; परन्तु उप्त पत्र व्ययहार से उन्हें यह जात हुशा फि सिविल सर्वित के नियमों में एका एकी कुछ भी परिवर्तन नहीं हो सकता। यह जान कर, उन्हों ने भारत वर्ष के कई एक विद्यार्थियों को विलायत में जाकर सिविल सर्विस परीक्षा देने की उत्तेजना दी। श्राप उनसे कहकर ही नहीं रहगए वरन धन की भी सहायता की । जो विद्यार्थी उस समय विलायत में परीक्षा देने जाते उनकी हर तरह की ध्यवस्था करने का भार आप अपने ऊपर लेते। कोई भी हिन्दुस्थानी विलायत जाता तो दादा भाई सदैव उस की सहायता करने को तय्यार रहेते थे। इस लिए विलायत जाने वाले सब भारतवासियों के लिए दादा भाई मानो एक साश्रय-धाम ही. यनगए 'विलायत में व्यापार करते करते श्रापको दो तीन वार टोटा भी सहना पड़ा परन्तु नाप बराबर उस काम को करतेही रहे । सन् १८६० में, श्राप ने मेंचेस्टर में “कपास का संचय” इस विषय पर एक व्याख्यान दिया। उप्त वक्त आप के अनुभव की लोगों ने बहुत कुछ तारीफ़ की। सन् १८६९ में, आपने "पारसी लोगों का धर्म और उनकी रीति रिवाज" पर कई एक लेख पढ़े और सन् १८६५ में, 'लन्दन इण्डियन सोसाइटी में सिविल सर्विस के नियमों पर कई एक व्याख्यान दिए । और इसी सोसाइटी के द्वारा स्टेट सेक्रटरी के साथ पत्र व्ययहार किया। इस लिखा पढ़ी का