दादा भाई नौरोजी। १३ पाप का इङ्गलेण्ड में रह कर, व्यापार करना देश के लिए, हितकारी हुमा । यह बात सच है कि, आप को व्यापार में यश प्राप्त हुना; परन्तु इसमें सन्देह नहीं कि, व्यापार की अपेक्षा स्वदेश की सेवा करने में, उन्हों ने अधिक परिश्रम किया । स्वतंत्रता मिय अंगरेजों के बीच में, रह कर दादाभाई ने भारत के राजकीय विषयों में, सुधार होने के लिए, बहुत कुछ उद्योग किए । भारत का दुस्ख विलायती सरकार को मुनाने का वीजारोपण सब से पहले दादाभाई नौरोज़ी ने ही किया। सिविल सर्विस परीक्षा में, अंगरेज़ों के साथ मुकाबला करने का, जो सौभाग्य इस देश के युवकों को प्राप्त हुआ, उसका मुख्य कारण आप ही हैं। भारत और इङ्गलेंड वासियों में हेल मेल बढ़ाना, भारतीय प्रजा के दुःषों को विलायत के न्याय मिय लोगों के सामने निवेदन करना और भारत के विद्यार्थियों की पढ़ने के लिए विलायत में उपयरपा होना, पही आपके उद्देश हैं।
- , जय दादाभाई नौरोज़ी विलायत में जाकर व्यापार करने लगे
तब वहां धीरे धीरे उनका कई एक बड़े आदमियों से परिचय हुमा और घोड़े समय में ही आप के तान और विद्या की प्रशंसा अंगरेज़ लोगों में होने लगी। माप को कई एक अच्छी अच्छी सभाओं में मान भी मिला। "लिवरपूल लिटरेरी सोसाइटी, "फिलेन्याधिक मासाइटी, कौंसिल श्राफ लिवरपूल एपेनियम," "काटन सप्लाय असोसिएशन आफ मंचि- स्टर, "रायल इन्स्टिट्यूशन आफ लंदन," रायल एशियाटिक सोसाइटी माफ ग्रेट ब्रिटन एपड प्रापलेह' प्रादि सभात्रों ने आप को अपना सभा- सद बनाया । भाप ने भी यहां जान डिकन्सन और कई एक भारतहितैषी अंगरेज़ सज्जनों की सहायता से गलन्दन इण्डियन सोसाइटी" और "ईस्ट इण्डियन प्रासासिएशन" नाम की दो सभाएं स्थापित की। कुछ दिनों बाद पाप लन्दन यूनिवर्सिटी कालेज में गुजराती भाषा पढ़ाने के लिए मोफ़ेसर नियत हुए और वहां की सिनेट ने आपको अपना सभासद भी बनाया। जब दादा भाई नौरोजी ने, अपनी अलौकिक बुद्धि और दीप उद्योग
- मार
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