दादा भाई नौरोज़ी। a BROYnono शैले शैले न माणिक्य, मौक्तिकं न गजे गने । साधवो नहि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ॥ तिहास के पढ़ने वाले जानते हैं कि, अमेरिका देश की स्वतंत्र करने वाला एकही जार्ज वाशिंगटन हुप्रा, राजपूतों का नाम अजरामर करने वाला एक ही प्रताप सिंह हुमा और इसी प्रकार महाराष्ट्र देश को स्वाधीनता का सुख देने वाला अकेला शिया जी हुंआ । ऐसे पुरुष-रत्र पृथ्वी पर कभी कभी जन्म लेते हैं। इसी तरह आजकल हमारे देश में दादा भाई नौरोजी एक अपूर्व पुरुष-रत्न हैं। श्राज साठ वर्ष से अधिक हो गये कि आप तन, मन, धन, से देश की भलाई के लिए, प्रयत्र कर रहे हैं। उनका चरित्र अत्यन्त मनोरंजन तथा शिक्षा दायक है। दादा भाई का जन्म, यम्यई में, ४ सितम्बर सन् १८२५ ईस्वी को हुआ। इनके पैदा होने के चार वर्ष बाद इनके पिता का देहान्त हो गया । तब इनकी शिक्षा का भार इनकी माता के ऊपर प्रान पड़ा इनकी माता लिखी पढ़ी विद्वान नहीं थीं; परन्तु वह बुद्धिमती अवश्य थीं। उनकी यह प्रबल इच्छा थी कि, मेरा पुत्र विद्वान होकर संसार में नाम पैदा करे। उन्होंने दादा भाई को शिक्षा दिलाने में किसी प्रकार की कोताही नहीं की। पहले ये ५ वर्ष की अवस्था में, एक गुजराती पाठ- शाला में पढ़ने को भेजे गये । जब वहां का पढ़ना लिखना ख़तम होगया तय इन्हें अगरेजी पढ़ाने के लिए इनकी माता ने 'एल्फिन्स्टन इस्टिट्यूट' में भर्ती करा दिया। वहां इनकी बुद्धि का धीरे धीरे प्रकाश होने लगा। थोड़ेही समय में इन्हों ने अपने सब अध्यापकों को अपने गुणों से
- हर एक पहाड़ में माणिक नहीं पैदा होते, न हर एक हाथी में
मोती निकलते हैं, साधु जन सब ठौर नहीं मिलते और न हर एक वन • में चन्दन पैदा होता है।