कांग्रेम-परितायली। . आप किसी धर्म . कहते हैं । आधे अङ्ग का निकम्मा रहना फितना पुरा है । यदि मनुष्य का एक हांध येकार हो जाय तो उसे कितना कष्ट भोगना पड़ता, है? फिर भला जय प्राधा अङ्गही निरुपयोगी हो जाय तो कितना दुःख उदाना पड़ेगा, इस की कल्पना सहजही में हो सकती है। एक येर आप का ध्यान ईसाई धर्म की ओर झुका । आप ईसाई हो जाने को राजी हुए । परन्तु हिन्दू धर्म की उत्तम उत्तम. पुस्तकों का अवलोकन और वेदान्त का अध्ययन करने से आप की राय पलट गई। तब से भाप हर एक धर्म को अच्छा समझते हैं। की निन्दा नहीं करते। धर्म परिवर्तन को आप यहुत ही बुरा समझते हैं। धर्म की पुस्तकों को, विशेषतः वेदान्त विषय की पुस्तकों को, आप खब जी लगा कर पढ़ते हैं । परोपकार के यरायर दूसरा कोई धर्म नहीं, ऐसा आप मानते और उस पर अमल करते हैं। आप यथा साध्य दान भी करते हैं, परन्तु वह दान केवल देश हित और परोपकार के कार्यों के लिये किया जाता है। एक कुदुम्य के सारे लोगों का एकत्रित रहना ये देश के लिए हानि कारक समझते हैं। इसका ये बहुतही विरोध करते हैं। इस विषय में श्राप का मत ऐसा मालूम होता है कि एक कुटुम्ब के लोगों के एक साथ रहने से ऐक्यता और प्रीति में अन्तर पड़ जाता है। परन्तु हमारी समझ में यह बात ठीक ठीक नहीं आती।त्रियों की शिक्षा पूरी हुए बिना उनका विवाह नहीं होना चाहिये, यह भी आपकी राय है। उमेश बायू बड़े सरल स्वभाव के पुरुप हैं। आपको पुस्तकावलोकन पा बड़ा शौक है । अंगरेजी भाषा में आप परिहत हैं। परन्तु बंग भाषा की पुस्तकों को आप रुधि पूर्वक पढ़ते हैं। अंगरेजी भाषा का कोई ही ऐसा गद्य और पद्य का ग्रंथ होगा जिसे आप ने न पढ़ा हो । अंगरेजी भाषा के अच्छे अच्छे सय ग्रंथों को मापने खूबही ध्यान पूर्वक पढ़ा है और अय मी यरायर पढ़ते हैं। चार्लेस लैब और बंकिम बाबू के पुस्तकों को माप यही रुचि के साथ पढ़ते हैं। ।
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