पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/२३

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यायू उमेशचन्द्र यनर्जी। उमेश बायू भारत सरकार ने इनकी योग्यता को जान कर, सन् १८८४ ईस्वी में इन्हें फलफत्ता हाई कोर्ट का जज नियत करना चाहा, परन्तु इन्होंने अश होने से इनकार कर दिया। क्योंकि इस जगह को स्वीकार करने से उन्हें कुछ विशेष धन का लाभ न था। अतएय उन्होंने स्वतंत्र रहना ही अच्छा समझा। सन् १८८५ ईस्वी में घम साहय की कृपा से नेशनल कांग्रेस की उत्पत्ति का समय आगया। कांग्रेस के मुखियात्रों ने पहली बार बम्बई में काग्रेस करने का विचार किया। परन्तु इस सभा का सभापति कौन हो, इस विषय को लोगों को बहुत कुछ चिन्ता करनी पड़ी। अन्त में की योग्यता, उनकी देश-भक्ति और राष्ट्रीय प्रेम को देख कर, सबों ने इन्हें सभापति यनाना निश्चय किया । सभा में जो इन्होंने उस साल व्याख्यान दिया. वह यहुत ही उत्तम और मनन करने योग्य है। ये राष्ट्रीय तम्नति और समाज सुधार के हर काम में तन, मन, धन, से सहायता पहुंचाने को तयार रहते हैं। सन् १८९२ में पाठवीं नेशनल कांग्रेस प्रयाग में हुई, उसके भी प्राप थे। दो बार पापको कांग्रेस का सभापति बनाकर भारत- वासियों ने इनके गुणों का अच्छा आदर किया। गुणी के गुणों का आदर करना देश और समाज दोनों के लिए हितकर है । गुणियों का आदर करने से अन्य लोगों का भी उत्साह बढ़ता है। देशहित का काम करने की और लोगों की राधि बढ़ती है। उमेश याधू पा बिवाह लहकपन में हुआ। जय इनकी उमर १५ वर्ष की थी तभी इनके माता पिता ने इनका विवाह कर दिया । इस कारण बाल विवाह से क्या क्या हानियां होती हैं इसे ये पूरी तौर से जानते हैं। खी शिक्षा के भी आप बड़े पक्ष पाती हैं। स्वयं अपनी कन्यायों को प्राप ने उच्च शिक्षा दिलाई है। अपनी पत्नी को स्वयं अच्छी तरह शिक्षा दे कर योग्य बनाया है। आप का कथन है कि संसार में जो हमारे साथ सदैव रहने वाली है उस साथी को अयोग्य रखना अथवा उसका मूर्ख होना बहुत हानि कारक है। हिन्दू धर्म में स्त्री को अर्द्धांगी सभापति हुए