पंहित प्रपोष्पा माघ । (१७) को मिपार गए। उनके मरने परदेश में चारों ओर हाहाकार फैल गया। भारत की राष्ट्रीय-सभा का स्तम्भ, भाधार, भारत का उपयलसारा, देग का मित्र, देगाभिमान की एक मात्र मूर्ति भीर माहस, उद्योग त्यादि गुणों की तानि, पविष्टत अयोध्यानाप स समार संसार से छठ गए। भारत ने अपना एक अमूएम रव खो दिया। भारत सरकार के हाप से उसका एक अध्या सलाहकार चला गया | कालकप्ता और प्रयाग विश्वविद्यालय का एक सर्वोत्तम सेनेटर जाता रहा और संयुक्त प्रान्त की राजकीय-सभा का एक उत्तम नीतत पपिष्टत स्वर्गधाम सिधार गया। पषित जी के मरने पर भयाग विश्वविद्यालपके चाइमसलर साहय ने कनवोकेगन के समय जो ध्यास्याम दिया उसमें पपिहत जी की घायत उन्होंने यह कहा था कि "ये अपनी इस सभा में हमेशा हाज़िर रहते थे। उनका शिक्षा सम्बन्धी यातों पर अधिक ध्यान था; इतना ही नहीं परन् उनका जान और विचार इस यायत यहुत ही बढ़ा चढ़ा था। उन में अलीलिक घुद्वि का प्रकाश पा और उनके गुंगण बखान करने योग्य है।" इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज श्रीमान् जस्टिस नाक्स ने पंडित, जी की राध पर डालने के लिए फूलों का हार भेगा था। हाईकोर्ट, की भरी कचहरी के सम्मुख चीफ जस्टिस साहय ने पण्डित जी की धावत यह कहा था कि "पंडित अयोध्यानाथ के कथन को हम हमेशा ध्यान से सुनते थे और उनके कपम से हमको कानून का यहुत सा ज्ञान प्राप्त होता था ।" सघ चीफ जस्टिम साहय इस कपन से पंडित जी की योग्यता और सरकारी मान काबहुत कुछ परिचय मिलता है। पंडित जी के मरने पर एक कविने बहुत ही ठीक कहा था:- "तुम तो सिधारे परलोकहि अयोध्यानाथ भारत मजा को प्रतिपाल कौन करि है।" -:0ति
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