पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१६१

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1 पंडित अयोध्या नाथ। (१५) सभा मंडप बनाने के लिए कोई जगह वहां नहीं मिलती थी। जब पंडित जी ने देखा कि, बहुत उद्योग करने पर भी कोई जगह नहीं मिलती तब उन्होंने अपना मकान खोद डालने और यहां पर मंडप बनाना निश्चय किया । परन्तु बाद को एक राजा साहय की कृपा से सभा मंडप के लिए एक मकान मिल गया ! इसी पर से उनके देशाभिमान और देशभक्ति का पूरा परिचय मिलता है। उनके भाषण के विषय में, उस समय इंडियन- मिरर पन्न के सम्पादक ने जो वाक्य लिखे थे, उन्हें हम पाठकों के जानने के लिए नीचे देते हैं। . "पंडित जी की भाषण शैली यही ही मधुर और स्पष्ट है। जैसा उनको विश्वास है वैसा ही वे कह कर लोगों को बतलाते भी हैं। समाज के सामने अपने मन काभाय साफ़ तौर पर बतलाने का गुणा उनमें मशंसनीय है। पंडित अपोध्या नाथ के देशाभिमान की बायत किसी प्रकार फी शंका मन में लाना बड़ी भूल है। उनमें देशभक्ति का गुण सर्वोपरि है यह कहने में कोई हानि नहीं है। वे चाहें किसी छोटी सभा में बोलें अथवा किसी बड़ी सभा में परन्तु सुनने वालों के मन को चुम्बक पत्थर की तरह अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं । बोलते समय अंगविक्षेप भीर हाव भाव यतलाने की क्रिया उनमें यहुत उत्तम है। कभी कभी तो बोलते समय अंगविक्षेप की मात्रा उनमें बहुत ही ज्यादा हो जाती है। परन्तु स्वदेशाभिमान, शुद्ध भाषा शैली शीर स्वदेश बांधवों के प्रति प्रेम, इन गुणों के आगे उनके अंगविक्षेप का दोप, किसी के ध्यान में नहीं पाता है। राष्ट्रीय-सभा के जनरल सेक्रेटरी मिस्टर ए०, ओ० घूम जय विलायत जाने को तय्यार हुए तय सय लोगों को सभा का काम उत्तम प्रकार, से चलने में नाना प्रकार की शंकायें उत्पन्न हुई । क्यों कि घुम साहब. सरीखा उद्योगी, परिश्रमी और दृढ़ निश्चयी सेक्रेटरी सभा को मिलना कठिन था। परन्तु देश के भाग्य से, अथवा राष्ट्रीय- सभा के भाग्य से, झूम साहय से भी अधिक गुणी पण्डित भयोध्यानाथ निकल पाए । सब लोगों ने मिलकर -राष्ट्रीय-सभा के ज्वाइंट जनरल सेक्रटरी की जयमाला आपके गले में पहना दी। इस देशहित के काम को