(१४) कांग्रेस-चरितायली । देकर कहा और कठिन परिश्रम द्वारा सभा का काम इस प्रकार उत्तम रीति से कर के दिसला दिया कि विपक्षी लोग स्तम्भित और चकित होकर रह गए। धठे लाट हफ़रिन, छोटे लाट कालविन सरीरो सरकारी अफसर श्रीर मरसैय्यद अहमद, राजा शिवप्रसाद और मुंशी नवलकिशोर सरीखे बड़े बड़े शादमियों के विरोध करने पर भी पंडित जी ने अपना कर्तव्य कर्म ममझ कर किसी को भी परवाह न करके, गान्ति के साथ इस देश हित के फाम को पूरा किया। मुनते हैं कि एक यार पंडित जी आगरे में कांग्रेस के लिए धन्दा इकट्ठा करने को गए थे। पंडित जी ने यहां एक सभा करके कांग्रेस के उद्देश्य यतसा फर चन्द के लिए अपील की। कांग्रेस के किमी एफ विरोधी ने हँसी उड़ाने की ग़रज़ से, एक लड़के को एक पैसा कि तुम जाकर इस पैसे को पंडित जी के पास भेज़ पर रख आप्रो ।लड़के ने वैसाही किया। पंडित जी इसके मतलब को समझ गए और सड़े होकर कहने लगे कि "मुझे प्राज से बढ़ कर ज्यादा सुशी अपने जीवन में और कभी नहीं हुई । इस यालक को इसकी मां ने यह एक पैसा पास मिठाई मिठाई खाने को दिया होगा परन्तु उसने देश की दुर्दशा को जान और देशभक्ति में मग्न हो कर भाज देश हित के लिए उस पैसे को अर्पण किया है। इस से अच्छा सुशी का दिन और कौन हो सकता है ? जब इस देश के बालकों को भी अपने देश हित के लिए इतना ध्यान और विचार है तो फिर देश के कल्याण होने में भय विलम्य क्या है ?" पंडित जी के इस भाषण को सुनकर, जिन सज्जन महात्मा ने यह काम हानि के लिए करवाया था वे बहुत ही ललित और चन्दा भी जितना अनुमान किया गया था उससे बहुत ज्यादा प्राया ! पंडित जी की गयाना उन लोगों में नहीं थी जो चार दिन तक सभा मंडप में बड़े बड़े लम्ये व्याख्यान देकर साल भर तक चुप चाप बैठे रहते हैं। वे साल भर तक बराबर सभा के लिए काम करते रहते थे। देश में चारों ओर घूम कर सभा के लिए चन्दा इकट्ठा करते थे, सभा का उद्देश्य लोगों को समझाते, और उसमें शामिल होने का लोगों से अनुरोध करते थे। सुनते हैं कि, जिस समय प्रयाग में सभा की बैठक हुई थी उस समय
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