पंडित अयोध्या नाय । ( १९) की बात है। हम में कृतज्ञता और पृतनता का कितना कितना भाग है इसे पाठक स्यपं सोच लें ! पपिहत अयोध्या नाथ जिप्स प्रान्त में पैदा हुए; उसी प्रान्त वासी उनके चरित से अनभित! उनके चरित सभ्यन्धी बहुत सी यातों का पता लगाने पर भी नहीं लगता; परन्तु नहां तफ हमें अन्य भाषा की पुस्तकों से उनके चरित सम्बन्धी हाल ज्ञात हुए उन्हें हम पाठकों के जानने के लिए नीचे देते हैं और हिन्दी के मर्मज्ञ रसिया लेखकों से हम सविनय प्रार्थना करते हैं कि वे पपिछत जी का एहत् जीयन परित लिख कर इस कलंक को दूर करें। पंडित अयोध्या नाथ जी का जन्म ८ अप्रेल सन्..१८४० इसयी को प्रागरा में हुा । श्राप कश्मीरी ब्राह्मण थे । प्रापके पिता का नाम पयिष्ठत केदारनाथ था। वे भी घड़े विद्वान् थे। पहले वे नव्याय जाफ़र के यहां दीवान रहे । याद को कई. कारणों से नौकरी छोड़ दी और भागरे में ही रह कर कुछ व्यापार करने लगे । व्यापार -7 में भी उनकी खूष उन्नति हुई । उनका ध्यान अपने प्रिय. पुत्र अयोध्या- नाथ की शिक्षा की ओर अधिक था। वे इनकी शिक्षा की भोर अधिक ध्यान देते थे। पण्डित अयोध्यानाथ बचपन से ही बुद्धिमान और परिश्रमी थे। पढ़ने लिखने में इनका खूब जी लगता था । फारसी और अरबी पढ़ने का इन्हें बड़ा शौक था । अतएव इन दोनों भाषाओं में . इन्होंने.अच्छी निपुणता लाभ की थी। अंगरेजी भाषा को भी परिहत जी ने.जी लगा कर परिश्रम के साथ पढ़ा था। जिस समय वे कालिज में पढ़ते थे उसी समय से लोगों का ख़याल था कि किसी न किसी दिन ये बड़े भादमी होंगे। “पपुलर एज्यूकेशन" सम्बन्धी सन् १८६०, ६१ की सरकारी रिपोर्ट में, पगिहत जी की बाबत "होशियार और प्रसिद्ध होने लायक विद्यार्थी- लिखा है। इम्तिहान होने पर इतिहास और तत्वज्ञान के प्रश्नों का जो उत्तर पयिष्ठत जी ने दिया उसकी बाबत परिहत जी की समाधारण बुद्धिमानी और विचार शक्ति की सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बड़ी तारीफ़ की है।
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