पृष्ठ:कांग्रेस-चरितावली.djvu/१५६

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Semy पण्डित अयोध्या नाथ । tutto दुर्वलार्थ बलं यस्य धर्मार्थश्च परिग्रहः । घाक सत्यवचनार्थ पिता सेनैव पुत्रवान् ॥ सार में ऐसे यहुत कम भादमी देसे जाते हैं जो दूसरों के सं लिए प्रथया देश के लिए अपनी हानि उठा कर कुछ काम करें। परन्तु ऐसे आदमी पैदा हुए बिना मानध- जाति का कभी कल्पाश नहीं होता। समय पहने पर ऐसे प्रतिभाशाली. पुरुषों का, प्रादुर्भाव हुए यिना संसार का काम नहीं चलता । इसी फारण देश का अधः पतन होजाने के याद धीरे धीरे ऐसे महा पुरुष पैदा होने लगते हैं जिनके द्वारा देश का हित होता है। वर्तमान समय में भी, इस गिरे हुए देश में, कई एक पुरुष पैदा हुए जिनके द्वारा भारत को बहुत कुछ लाभ पहुंचा। इन महापुरुषों में से एक तो हमारे , मान्त के ही सज्जन महात्मा थे जिनका नाम पण्डित अयोध्या नाथ था । पण्डित अयोध्या नाथ का नाम इस देश में व्यापक हो रहा है। हर एक लिखा पढ़ा श्रादमी उनके नाम से परिचित है। परन्तु उनका वृहत चरित . अब तक हिन्दी भाषा में छपा हुआ देखने में नहीं आया, यह बड़े लज्जा की बात है । भारत के अन्य प्रान्तों में जो बड़े बड़े पुरुष पैदा हुए हैं उनका चरित तो उन प्रान्तवासियों ने लिख कर प्रकाशित किया। बड़ी बड़ी पुस्तकें उनकी मातृभाषा में उनके चरित का परि- चय देने के लिए मौजूद हैं । परन्तु पण्डित अयोध्या नाथ सरीखे देश- हितैपी पुरुष का चरित हिन्दी भाषा में मौजूद नहीं यह कितनी शरम को

  • जिसका बल दुर्यलों की रक्षा के लिए, गृहस्थी, धर्म का काम

फरने के लिए और बोलना सत्य वचन के लिए है ऐसे ही पुत्र. पाफर पिता पुत्रवान् कहा जा सकता है।