(२) कांग्रेस-चरितायली। इन्होंने एक जहाज़ के ऊपर नौकरी कर ली। परन्तु इनके पिता ने इनका मन नौकरी के ओर से हटा फर पढ़ने की ओर - लगाया ।, उसी समय से इनका पढ़ना प्रारम्भ हुआ । यिद्या अभ्याम खतम करके ये सन् १८४९ में, कलकत्ते आए और ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नौकरी करली। कुछ दिनों तक इन्होंने कलकत्ते में ही काम किया, याद को सन् १८५६ में, संयुक्त प्रांत के इटावा जिले के कलक्टर और मजिस्ट्रेट नियत हुए । इटावे में कलक्टरी और मजिस्ट्रटी का काम इन्होंने यही योग्यता के साथ चलाया। इनके इटावा में लाने के थोड़े ही दिनों बाद उत्तर भारत में सिपाहियों ने यलया मचा दिया। इटावे का ज़िला और ग्वालियर राज्य की सरहद्द मिली हुई है। ग्वालियर में राय साहब पेशवा, तांतिया टोपे और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने आकर सेंधिया की सेना को अपनी ओर करके यहां बहुत ही भयङ्कर उपद्रव मचाया। महाराज जयाजी राव सेंधिया प्रागरे को चले गए। विद्रो हियों ने ऐसा सुअवसर पाकर इटावे की सरकारी काली फ़ौज को बलवा करने के लिए उकसाया। इटावे की फ़ौज ने यह जान कर कि ग्वालियर के महाराणा प्रागरे चले गये और ग्वालियर राज्य पर पेशवा ने अपना अधिकार जमा लिया, उन्होंने भी बलवा कर दिया। उस समय इटावा. में नवीं काली पल्टन रहती थी। उसने पहले पहल-सरकारी खजाने को ही लूटना चाहा ! परन्तु ह्यूम साहब सरकारी खज़ाना पहले ही नागरे भेज चुके थे। इस कारण विद्रोहियों के कुछ हाथ न लगा । जब विद्रोहियों ने सरकारी खजाना खाली पाया तब उन्होंने ह्यूम साहब को मार डालने की फ़िकर की। वे चारों ओर घूम साहब को तलाश करने लगे। परन्तु ह्यूम साहब ने इटावा की प्रजा पर बहुत ही उपकार किये थे ; इस कारण प्रभा इनको बहुत ही चाहती थी। अतएवं - इटावा के सारे लोगों ने मिल कर. यह निश्चय किया कि कुछ ही हो परन्तु ह्यूम साहब की जान • पर किसी.तरह का धक्का न आने देंगे। उस समय इटावा विद्रोहियों से भरा था। ह्यूम साहब की जान जाने का
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